18 नवंबर 2008 की रात थी। गांधीनगर का सेक्टर 27। अचानक प्रशासन बुल्डोजर लेकर पहुंचता है और साईंबाबा का मंदिर ढहा दिया जाता है। उसी रात सूरत के रांडेर इलाके के दीप माला सोसाइटी में शिव मंदिर पर भी बुल्डोजर चला। भीड़ उमड़ती है तो लाठीचार्ज कर पुलिस उसे तितर-बितर करती है। प्रदर्शनकारी खूब पीटे भी गए। तब गुजरात में सड़कों के विकास की राह में रोड़ा बने एक-एक कर कुल 150 मंदिर तोड़े गए। वो भी हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में। तब मोदी पर सेक्युलर बनने की लालच में हिंदू प्रतीकों को नष्ट करने का इल्जाम लगाते हुए विरोधियों ने गांधीनगर बंद का एलान किया था। मगर मोदी डिगे नहीं। बतौर मुख्यमंत्री उन्हें जब हिंदुत्व और विकास में एक को चुनना हुआ तो उन्होंने विकास को पहले चुना। यही वजह थी कि हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वाले मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में भी इतने मंदिर जमींदोज हुए। इसमें मोदी का क्या कुसूर। भला सोचिए। जिस धर्मस्थल या इबादतगाह की बुनियाद ही अवैध हो, वहां की पूजा कैसे पाक या पवित्र साबित हो सकती है। दरअसल मोदी तय कर चुके थे कि-उन्हें सूबे के विकास के लिए क्या-क्या करना है। उनके सामने बतौर सीएम खुद को गुजरात का विकास पुरुष साबित करने की चुनौती थी। क्योंकि संघ प्रचारक और भी तमाम भूमिकाओं में वे खुद को हिंदुत्व का चेहरा बहुत पहले ही साबित कर चुके थे। लिहाजा उन्हें यह पहचान दोबारा उजागर करने की कभी जरूरत रही ही नहीं। यही वजह रही कि मोदी सख्त फैसले लेते रहे। वे गुजरात को एक विकास मॉडल के रूप में बनाने में सफल रहे। फिर जब मौका 2014 के लोकसभा चुनाव का आया तो उन्होंने विकास पुरुष की इमेज को जमकर भुनाया। मोदी इसी गुजरात मॉडल को अपनी उपलब्धि प्रचारित करने में सफल रहे। भाजपा के बतौर पीएम दावेदार मोदी ने हर रैली में गुजरात मॉ़डल का बखान किया। जनता में विकास पुरुष की छवि चमका लिए। नतीजा लोकसभा चुनाव में बंपर सफलता मिली। कहने का मतलब है कि एक हिंदुत्ववादी मुख्यमंत्री के राज में भी जरूरत पड़ने पर मंदिर तोड़े जा सकते हैं, यह बताता है कि पार्टी का नेता होना और फिर देश या किसी सूबे का शासक बनने पर किसी की क्या प्राथमिकता या प्रतिबद्धता होनी चाहिए।
आज इस प्रसंग का जिक्र इसलिए कि देश में प्रधानमंत्री के बाद यूपी को ऐसा मुख्यमंत्री भी मिल गया है, जिनके समर्थक भी उन्हें हिंदू हृदय सम्राट मानते हैं। जैसा कि मोदी के समर्थक उन्हें मानते हैं। नारा भी खूब उछल रहा देश में मोदी और यूपी में योगी। सवाल उठता है कि क्या योगी भी मोदी से सीख लेकर विकास पुरुष की इमेज बनाना चाहेंगे। या फिर हिंदू हृदय सम्राट बनकर ही मगन रहेंगे। योगी का मानना है कि राम बिना राष्ट्र की कल्पना नहीं। वे ऐसे संतों में हैं, जो धर्म और राजनीति को अलग नहीं बल्कि एक ही सिक्के का दो पहलू मानते हैं। यूपी में प्रचंड बहुमत के बाद मोदी ने जिस तरह से गोरक्षनाथ संप्रदाय के इस महंथ के हवाले यूपी की गद्दी सौंपी, उससे जाहिर सी बात है कि योगी के कट्टर समर्थक उनसे उन्हीं बातों पर अमल करने की उम्मीद संजो रहे हैं, जो वह पश्चिम यूपी की रैलियों में धुआंधार झोंकते रहे हैं। योगी को यह बात समझना होगा कि 21 करोड़ आबादी वाले सूबे में 19 फीसदी मुसलमान हैं। पश्चिम यूपी के एक दर्जन जिलों में 30 से 45 फीसद आबादी है। मुस्लिम भी देश के नागरिक हैं। उन्हें कहीं खदेड़ा नहीं जा सकता। लिहाजा मुसलमानों का भरोसा जीतना भी योगी के लिए बड़ी चुनौती है। अगर पांच साल में योगी ने यूपी में सुरक्षित माहौल दे दिया कि एक भी सांप्रदायिक दंगे आदि की घटनाएं नहीं होती हैं तो यह विरोधियों के मुंह पर तमाचा भी होगा। तब योगी अखिलेश सरकार के मुंह पर भी तमाचा मार सकेंगे, जिनके राज में करीब पांच सौ छोटे-बड़े दंगे हुए। फिर भी अखिलेश की सपा सरकार खुद को मुस्लिम हितैषी ठहराती रही। मुस्लिम तुष्टीकरण पर योगी के तीखे बयानों से विरोधी दल उनकी मुस्लिम विरोधी छवि का डंका पीटते हैं। इन्हीं बयानों को हथियार बनाकर विरोधी दल मुसलमानों में खौैफ खड़ा करते हैं। हालांकि बयानों से इतर योगी की एक और छवि है। वह आप गोरखपुर में उनके गोरखपीठ जाकर देख सकते हैं। जहां दशकों से दर्जनों मुसलमान अपनी दुकानें चलाकर पेट पाल रहे हैं। योगी आदित्यनाथ एक इंटरव्यू में यह कहते हैं कि-हिंदुत्व और विकास को एक दूसरे का विरोधी नहीं समझना चाहिए। बात तो सौ प्रतिशत ठीक है। मगर योगी को अब ऐसा काम दिखाना भी होगा। जिससे लगे कि वे हिंदू हृदय सम्राट ही नहीं विका पुरुष भी हैं। सांसद योगी कल जब शपथ लेंगे तो मुख्यमंत्री योगी बन जाएंगे। अब देखना है योगी आदित्यनाथ सूबे में सामाजिक समरसता के साथ विकास का संतुलन कैसे स्थापित करते हैं। योगी की यही योगक्रिया उनकी काबिलियत होगी। क्योंकि अब योगी सिर्फ भाजपा सांसद नहीं बल्कि यूपी के अभिभावक भी हो गए हैं।