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लखनऊ ब्यूरो-: काफी लंबी प्रतीक्षा और बडे पशोपेश में रहने के बाद आज सायं भाजपा नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश में अपनी नई सरकार के मुख्य मंत्री के रूप में रेलराज्य मंत्री मनोज सिन्हा के नाम की विधिवत घोषणा कर दी। अब कल शाम लखनऊ के स्मृति उपवन में आयोजित एक भव्य समारोह मे अपने चुनिंदा सहयोगियों के साथ यह प्रदेश के नये मुख्य मंत्री के पद की शपथ ग्रहण करेंगे। इस अवसर पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपाध्यक्ष अमित शाह, राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह सहित भाजपा शासित कई प्रदेशों के मुख्य मंत्रियों सहित अन्य अनेक अतिविशिष्ट अतिथियों के उपस्थित रहने की संभावना है।
हाँलाकि, लगभग 14 सालों तक प्रदेश में सत्ता से बाहर रही भाजपा को राजसिंहासन पर आसीन कराने का श्रेय, जाहिरातौर पर, मुख्यतः प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को ही दिया जा रहा है। लेकिन, राजनीति में जरा सी भी सक्रिय भागीदारी के बिना भी लोकहित में सिर्फ अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करते हुए ही राज्यपाल राम नाइक ने मुख्य मंत्री रहे अखिलेश यादव पर बहुत भारी पडकर उन्हें उनकी असली औकात बता दी है। यह उन पर काफी भारी साबित हुए हैं। अपनी अद्भुत सूझबूझ और विधिसम्मत कार्यप्रणाली से इन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि लोकतंत्र तो लोकतंत्र ही होता है। इसमें राज्यसत्ता किसी की भी बपौती जैसी नहीं हो सकती है। तानाशाहियत की तो इसमें तिल भर की भी गुंजाइश नहीं। तानाशाहों तो इसमें जड से उखड जाती हैं।
वैसे, राज्यपाल राम नाइक ने इस बात का स्पष्ट संकेत 22 जुलाई 2014 को ही दे दिया था। इस दिन इन्होंने अपने पद की शपथ ग्रहण की थी। इसके बाद ही इन्होंने प्रदेश के हर जरूरतमंद व्यक्ति को राजभवन आने की खुली इजाजत दे दी थी। इसके पीछे उनकी मंशा सूबे के आमआदमी की नब्ज पर हाथ रखकर उसके दुखदर्द का साझीदार बनना ही रही है। इसका निर्वहन वह आज भी बिना रुके थके करते चले आ रहे हैं। राज्यपाल के लिये जीवन मूल्य ही सर्वोपरि है। इसीलिये अनेक आग्रहों और दबावों के बावजूद, उन्होंनं इसकी कीमत पर कभी कोई समझौता नहीं किया।
बहरहाल, प्रदेश में अपने पौने तीन साल के कार्यकाल में इन्होंने अब तक राजभवन में सोलह हजार से भी अधिक जरूरतमंद लोगों से मुलाकात की है। उनकी दुखती रगों पर इन्होंने बडी आत्मीयता से अपनी हाथ रखा। उनका योगक्षेम पूछा और यथासंभव उनकी मदद भी करते रहे हैं। इस तरह सूबे के आम आदमी के दिल में उनके लिये बडी जगह बन गयी है। उनका यह सिलसिला आज भी जारी है। प्रदेश में पहले के किसी भी ‘लाटसाहब‘ में इस हद तक संवेदनशीलता नहीं दिखी। इनमें से कई तो अपनी लाटसाहबी के राजरंग में डूबते उतराते रहे हैं। लेकिन, सूबे के आम आदमी का कंठहार सिर्फ यही बन सके है।
लेकिन, लगता है कि राज्यपाल रामनाइक सिर्फ इतने से ही नहीं संतुष्ट हो सके। इन्हें लगा होगा कि इस विशाल प्रदेश में ऐसे अनगिनत लोग होंगे, जो अपनी मजबूरियों के चलते लाख चाह कर भी राजभवन पर दस्तक नहीं दे सकते हैं। इसलिये, इन्होंने खुद ही उन तक पहुंचने का फैसला किया। इसके लिये इन्होंने प्रदेश के विभिन्न जगहों में होने वाले महत्वपूर्ण सार्वजनिक और संस्थागत आयोजनों में जाने के लिये आंमत्रण स्वीकार करना शुरू कर दिया। नतीजतन, अब तक यह लगभग 570 सार्वजरिक कार्यक्रमों में जा चुके हैं। इससे इनकी लोकप्रियता में तेजी से इजाफा होने लगा। यही वजह है कि सूबे के आम आदमी पर इनके एक एक शब्द और जुमले का जादुई असर पडने लगा।
अपनी इसी असाधारण लोकप्रियता के कारण यह मुख्य मंत्री अखिलेश यादव पर क्रमशः भारी पडते गये। दूसरी ओर, अखिलेश यादव के मन में हमेशा सत्ता में ही बने रहने का भ्इनख लेख यादव पर हावी होती रही। इसी के साथ उनकी सरकार भी बेलगाम होती चली गयी। ऐसे में कभी बाहुबली डी.पी.यादव को अपनी छाया तक छूने की इजाजत न देने वाले अखिलेश यादव को गायत्री प्रजापति जैसे बेहद बदनाम लोग बहुत पसंद आने लगे। उसे इन्होंने अपनी आंखों की पुतली जैसा बना लिया।, यही वजह रही है कि उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गैंपरेप और यौनशोषण जैसे गंभीर आरोपों में मुकदमा लिखना तो इनकी पुलिस की मजबूरी बन गयी थी। लेकिन, इसके बावजूद, गायत्री प्रजापति को संरक्षण देने में इनकी सरकार ने नेे अपना पूरा संरक्षण प्रदान किया था। इसलिये वह बेखौफ होकर पीडिता की छाती पर मॅूग दलता रहा और इन्होंने भी उसे मंत्रीपद से बर्खास्त करने की बजाय उस पर अपनी अनुकंपा ही बनाये रखी थी। अमेठी से उसे चुनाव जिताने के लिये वहां जाकर लोगों से पुरजोर अपील तक करने से यह बाज नहीं आये।
हद तो उस समय हो गयी, जब इन्हीं राज्यपाल राम नाइक ने उस समय मुख्य मंत्री रहे इन्हीं अखिलेश यादव को सीधे पत्र लिखकर उसे बर्खास्त करने के लिये कहा तो उसके खिलाफ कार्यवाही करने की बजाय राज्यपाल के इस पत्र को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह राज्यपाल को उनकी औकात जताने जैसी कोशिश थी। इसके पहले भी राज्यपाल ने मथुरा के जवाहर बाग में अवैध कब्जे को हटाने के दौरान जान-माल के हुए नुकसान के भी बारे में श्वेतपत्र जारी करने के लिये भी इन्हें एक नहीं कई पत्र लिखे थे। लेकिन, उसका भी यही हश्र हुआ। अखिलेश यादव लगातार चुप्पी ही साधते रह गये।
इसी तरह प्रदेश के लोकायुक्त ने मंत्रियों और नौकरशाहों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के 50 गंभीर मामलों की जांच कर सरकार के पास उसकी रिपोर्ट भेजकर कार्यवाही की संस्तुति की थी। लेकिन, इनमें से 48 जांच रिपोर्टों पर कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी। इस पर लोकायुक्त का पत्र पाने के बाद राज्यपाल ने अखिलेश सरकार को कई पत्र लिखे थे। लेकिन, उन सारे पत्रों को ठंडे बस्ते में डालकर कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी।
इस तरह दूसरे तमाम मामलों में भी राज्यपाल राम नाइक तत्कालीन सरकार को लगातार पत्र लिख कर अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करते रहे। दूसरी ओर अखिलेश सरकार ऐसे सारे पत्रों को ठंडे बस्ते में ही डालती रही। इन सारे कारनामों पर अपनी पैनी नजर गडाये लोगों ने इसे बडी संजीदगी के साथ लिया। इसका असर यह पडा कि लोगों में अखिलेश यादव के लिये गलत संदेश जाने लगा। उसे लगा कि अखिलेश यादव काम के नाम पर अपने कारनामें दिखा रहे हैं। इन्हें देखकर वह लगातार उबलता ही रहा। अंततः सही समय आने पर उसने सही समय आने पर अखिलेश यादव को राजसिंहासन से खींच कर सडक पर खडा कर दिया।
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