नई दिल्लीः राजस्थान निवासी युवा इंजीनियर गणपत से मिलिए। कभी एक मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों रुपये पैकेज की नौकरी करते थे, मगर दिल ने एक दिन कहा-यार गणपत कुछ नया करो ...न। जिसमें नेम-फेम दोनो हो, साथ ही गांव और समाज का भी भला हो। बस इस युवा के दिमाग में एक आइडिया कौंधा। जिसने गणपत की दुनिया ही बदल दी। गणपत ने सोचा क्यों न लोगों के सामने हाथ फैलाते भिखारियों को काम करना सिखा दिया जाए। उन्हें आत्मनिर्भर करने से न केवल समाज का भला होगा बल्कि स्टार्टअप से उनकी दुनिया भी संवर जाएगी। बस इस युवक ने गांव में अनोखा स्टार्ट अप शुरू किया। सौ से ज्यादा भिखारियों को इससे जुडा। और गांव में शुरू कर दी आर्गेनिक फार्मिंग। हरी सब्जियां आदि फसल पैदाकर बाजार में बेचा जाता है। उससे मिले पैसे से भिखारियों को मेहनताना दिया जा रहा। इस नायाब स्टार्ट अप का मकसद सिर्फ यह कि कोई किसी के सामने आत्मसम्मान बेचकर हाथ फैलाता न मिले। यूं तो गणपत ने पहले अपने स्टार्टअप में राजस्थान सरकार से मदद मांगी मगर कोई उम्मीद नहीं दिखी तो खुद के दम पर स्टार्टअप शुरू कर दिखा दिया।
फोटो-आर्गनिक फार्मिंग से भिखारियों को जोड़ा रहे इंजीनियर गणपतभिखारियों को जोड़ दिया आर्गेनिक फार्मिंग से
भिखारियों को आत्मनिर्भर बनाने वाले इस स्टार्ट अप को धरातल पर उतारा है राजस्थान के सीकर ज़िले के मंडरू गांव निवासी गणपत यादव ने। गणपत ने बताया कि उन्होंने 'ऑर्गेनिक फार्मिंग' के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया है। प्रोजेक्ट की ख़ास बात यह है कि इसमें काम करने के लिए सड़क पर कटोरा लेकर भीख मांगने वाले लोगों को चुना जाता है। रजिस्टर्टड संस्था के बैनर तले भीख मांगने वाले बच्चों को आर्गेनिक फार्मिंग के गुर सिखाने के साथ उनकी पढ़ाई भी कराई जा रही है। मकसद है कि देश में राजस्थान से भिक्षावृत्ति की समस्या को सुलझाने का फार्मूला देना।
भिखारी खेती कर पैदा कर रहे सब्जियां
गणपत भिखारियों को आर्गेनिक खेती से जोड़कर फिलहाल सब्जियां, मूंगफली, बाजरे का चारा जैसी फसलें पैदा कर रहे। पैदावार के बाद मार्केट में गणपत की संस्था उसे बेचती है। इसके बाद सभी भिखारियों को पैसे दिए जाते हैं। उनके खाने से लेकर बच्चों की पढ़ाई सब कुछ खर्च संस्था देखती है। गणपत का कहना है कि ऑर्गेनिक फार्मिंग से अच्छे रिटर्न मिलते हैं। इसीलिए प्रोफेशनल लोगों को जोड़ने के बजाये आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों को जोड़ा जा रहा है।
उनका कहना है कि उनके साथ इंजीनियरिंग किये उनके दोस्त आज बैंगलोर, पुणे, अमेरिका, रशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसी जगहों पर मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छे पॅकेज पर काम कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने सपने को साकार करने के लिए एक अलग राह चुनी।