नई दिल्ली : ओडिशा के कालाहांड़ी में पत्नी के शव को कंधे पर लादकर ले जाते दाना मांझी को कोई नहीं भूल सकता और ओडिशा के ही बालासोर में एक शव को गठरी में फिट करने के लिए जिस तरह उसकी हड्डियां तोड़ी गई वह किसी की भी रूह को कंपा सकता है। दाना मांझी को जहाँ 60 किलोमीटर अपने गांव शव ले जाने के लिए कोई एबुलैंस नहीं मिल पायी, तो बालासोर में शव की हड्डियां भी शव को ले जाने की सुविधा के लिए तोड़ी गई क्योंकि इन अस्पतालों में एम्बुलेंस की व्यवस्ता दूर की बात है।
एम्बुलेंस सेवाओं पर लोगों ने किये 18,149 करोड़ खर्च
स्वास्थ्य मंत्रालय की ही ताजा रिपोर्ट की माने तो साल 2013-14 के बीच लोगों ने अपना इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पतालों के मुकाबले निजी अस्पतालों पर आठ गुना ज्यादा खर्च किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकारी अस्पतालों पर लोगों ने 8193 करोड़ रुपए खर्च किये वहीँ निजी अस्पतालों पर यह खर्चा आठ गुना ज्यादा 64,628 करोड़ रु. रहा। लोगों ने मात्र एम्बुलेंस जैसी परिवहन सेवाओं पर 18,149 करोड़ रूपये खर्च किये। इस रिपोर्ट में सबसे चौकाने वाली बात यह रही कि लोगों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च की गई कुल राशि 4.2 लाख करोड़ में से 73 फीसदी लोगों ने खुद खर्च किये।
कृत्रिम प्रजनन का कारोबार 3000 करोड़ के पार
सेरोग्रेसी बिल के बाद अब स्वास्थ्य मंत्रालय विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ), भ्रूण स्थानान्तरण, स्पर्म बैंक, जैसी सेवाओं को नियंत्रण करने की योजना पर विचार कर रहा है। जानकारी के मुताबिक़ देश में कृत्रिम प्रजनन से सेवाओं का कारोबार आज 3000 करोड़ का हो चुका है। एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों का कहना है कि देश में इस तरह की सेवाएं देने वाले क्लीनिकों की संख्या बढ़ती जा रही है और इनको नियमित करने की जरूरत है।