केरल : भारत की राजनीति में आरएसएस और लेफ्ट एक दूसरे की विचारधाराओ के कट्टर विरोधी रहे हैं। इन दोनों विचारधाराओं में एक बात जो समान है वो हैं इनका उग्र स्वभाव लेकिन संघ और लेफ्ट के बीच असली खूनी संघर्ष तो दिल्ली से 2500 किलोमीटर केरल के कुन्नूर में हो रहा है जो दुनियाभर में अपनी चाय के मशहूर है। कुन्नूर में अब तक इन दोनों विचारधाराओं के संघर्ष में 229 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं।
बीड़ी फैक्ट्री की हड़ताल से शुरू हुई खूनी संघर्ष की कहानी
कन्नूर में आरएसएस और लेफ्ट की इस लड़ाई का इतिहास 1960 से शुर होता है और पहली हत्या 1969 में हुई थी। यह एक बीड़ी फैक्ट्री में व्यापार संगठनों की एक हड़ताल के साथ शुरू हुआ। बीड़ी कारखान आरएसएस की मदद से कुचल दिया गया था। जिसके जवाब में सीपीआई (एम) ने एक प्रतिद्वंद्वी बीड़ी कारखाना शुरू कर दिया। आरएसएस और वामपंथी एक दूसरे को इसके लिये जिम्मेदार मानते हैं। आरएसएस नेता वालसन थिलांकेरी कहते हैं कि लेफ्ट का लोकतंत्र में भरोसा नही है। उनका कहना है कि सीपीआई (एम) की नयी पीढी अब बीजेपी की ओर आ रही है। इसलिए उनका मानना है कि वह चाहते हैं कि आरएसएस या तो उनके सामने घुटने टेक दें या लड़ाई के लिए तैयार रहे।
कन्नूर में इन दोनों के ताज़ा संघर्ष का शिकार मोहनन और रमित हैं। इन दोनों में अंतर यह है कि मोहनन को जहाँ सीपीआई (एम) का रक्तसाक्षी कहा जा रहा है तो रमित को बीजेपी/आरएसएस का बलिदानी कहा जा रहा है। केरल में वामपंथी मोर्चा के सत्ता में आने के बाद अभी तक यहाँ 6 लोगों की मौत आपसी संघष में हो चुकी है। इनमे से तीन बीजेपी/आरएसएस के हैं तो तीन सीपीआई (एम) के कार्यकर्ता है।
मोहनन (50 ) की हत्या 10 अक्टूबर को हुई जबकि उसके दो दिन बाद रमित (27) की भी हत्या हो गई। रमित की मौत पिनाराई में हुई जो केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का गृहनगर भी है। मोहनन और रमित दोनों अपने इलाकों में बेहद लोकप्रिय थे। मोहनन के यहाँ तो ऐसा कोई ऐसा व्यक्ति नही था जिसकी मोहनन ने मदद नही की लेकिन फिर भी उसे मार डाला गया। मोहनन के पडोसी वीके रंजन का कहना है कि आरएसएस ने उसे इसलिए निशाना बनाया क्योंकि उसे लग रहा था कि इलाके में उसके रहने व आगे नही बढ़ सकता। मोहनन हत्या के एक दिन पहले तक वह अपने पडोसी अली की बेटी की शादी की तैयारियों में हेल्प कर रहा था। अली की बेटी की शादी हुई लेकिन घर में सनाटा पसरा रहा।
आरएसएस के रमित की कहानी भी मोहनन जैसी ही है। उसकी माँ नारायणी अपनी कहानी सुनाते हुए कहती है ''मेरे बेटे ने अपने जन्म स्थान को छोड़ने से इनकार कर दिया था। वो कहता था कि हमें यहाँ किसी से कोई खतरा नही है क्योंकि मैंने यहाँ कभी किसी को दुखी नही किया''। नारायणी कहती है कि ''14 साल मैंने अपने पति को भी एक राजनीतिक हिंसा में खो दिया था। उन्होंने मेरे पति को भी मेरे बेटे की तरह तलवार से मार दिया था। वह रोते हुए कहती है कि ''अब मैं अकेली बची हूँ मुझे भी मार डालो। अगर उन्हें मेरे बेटे को मारना था तो पति के साथ ही मार देते 27 साल तक इसका इंतज़ार क्यों करवाया।