नई दिल्ली : दो दशक पहले भारत की सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री विश्वपटल पर तेजी से उभरी और उन्होंने चीन और अमेरिका जैसे देशों में भी अपना लोहा मनवाया लेकिन वर्तमान में भारत की टॉप आईटी कंपनियां अपने मुनाफे के लिए तरसती नजर आ रही है। टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस जैसी कंपनियां वर्तमान में सिंगल डिजिट के ग्रोथ पर अटकी हुई है। एक रिपोर्ट की माने तो भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग का सालाना एक्सपोर्ट 110 अरब अमरीकी डॉलर का है जबकि साल 2015 में इनका ग्रोथ मात्र 9.8 प्रतिशत रहा।
इस वक़्त भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों में 42.5 लाख लोग काम कर रहे हैं। लेकिन हालही में आये आईटी सेक्टर के बदलाव ने इस क्षेत्र में जाने वाले छात्रों के मन में एक भय पैदा कर दिया है। कहा जा रहा है कि आईटी सेक्टर में आये ऑटोमेशन की तकनीक से इस सेक्टर की लाखों नौकरियां खतरे में आ गई हैं।
2015 में भारतीय आईटी कंपनियों ने की 24 प्रतिशत नौकरियां कम
देश की पांच प्रमुख सॉफ्टवेयर निर्यातक कंपनियों टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल और कॉग्निजेंट ने साल 2015 संस्थानों में 2014 के मुकाबले 24 प्रतिशत कम नौकरियां दी। चेन्नई की सॉफ्टवेयर कंपनी कॉग्निजेंट ने 2014 के मुकाबले 2015 में अपने यहाँ नौकरियों में 74.6 प्रतिशत की कमी की जबकि एचसीएल ने साल 2015 में नियुक्तियों में अपने यहाँ 71 प्रतिशत की कमी की। कहा जा रहा है कि ऑटोमेशन से कंपनियों की प्रयोग की दर में सुधार हुआ है इसलिए वह लगातार ऑटोमेशन का सहारा ले रही हैं।
भारतीय इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्रों में निराशा
मनिपाल ग्लोबल एजुकेशन के चेयरमैन मोहनदास पाई की माने तो भारत में आईटी सेक्टर में काम करने वाले ज्यादातर लोग 30 से 70 लाख सालाना के बीच कमाते हैं लेकिन आगामी 10 सालों में कई लोग अपनी नौकरियां गंवा देंगे। वर्तमान में सामने आये कुछ आंकड़ों ने सरकार को भी मुश्किल में डाल दिया है। केंद्र सरकार की अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) की हाल में ही हुई बैठक में इस पर बेहद चिंता जताई गई।
आंकड़ों में सामने आया है कि देशभर में करीब 3,365 इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थान हैं। जहाँ 16,32,470 सीटें हैं लेकिन इस शिक्षा सत्र में इनमें से सिर्फ 8,36,640 सीटें ही भर सकीं। इन कॉलेजों में मात्र 3,40,531 बच्चों का प्लेसमेंट हुआ। यानी देशभर के इंजीनियरिंग कॉलजों में होने वाले दाखिलों में करीब एक लाख तक की कमी आई है। इसका सबसे बड़ा कारण नैसकॉम के इन आंकड़ों से पता चलता है जिसमे कहा गया है कि देश में 25 फीसदी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ही नौकरी के लायक होते।