लम्हे
उन्ही कहीं लम्हों में थी ज़िंदगानी
जिसे सोच रहा है "राहुल दीवाना "
बस घाव है उनकी परछाई की
याद करना है उनकी बेवफाई को
चलकरके दिखाना ही होगा
पथ मुझे ज़िंदगानी का
हिअ लोग देख रहे " राहुल दीवाना "
शायद याद करना पड़ता है
मुझे अपनी ज़िंदगानी
उन्ही कही लम्हो में थी ज़िंदगानी
सोचना है हमको देखना भी है हमको
अब मुझे कही बताना भी होगा
मन से इनके द्वेष हटाना भी होगा
तभी तो लम्हों में थी ज़िंदगानी
तन से था सोचा
मन से है करना मुझे
बता दू कैसे मै तुझे
है सोचना ये फरमान मेरी ॥॥