कही भी मै रहू बस
मुझे तेरा मुखड़ा नजर अाता है
सोचु मै क्या बस
इसे सोचने से होता है क्या
जहा कही भी रहू बस
तेरी याद मुझे बुलाती है
जब भी तुम्हे सोचु बस
तेरा चेहरा सामने आ जाता है
कही पर भी मै चलु बस
तेरी यादों का ही सहारा है
सोच रहा हु कमरे में बस
कही तुमसे जुदाई न हो मुझसे
हमेशा तेरे यादों का मै बस
फर्याद करता रहता हु
मंजिले पाकर के भी बस
तुझे ही हमेश याद करता रहता हु
बस तेरे पन्ने दिल में ,मेरे अब वो छआ चुके है
उन पर छापे शब्द मुझे
बेक़रार दिल को कर चुके है
अब इन पन्नो की खूबी बस
बस अब हम तारीफ कर चुके है ॥॥