कोशिश
कोशिशे इंसान को बढ़ना सिखाती है
स्वप्ना के परदे निगाहों से हटाती है
हौसला मत हर गिर ओ मुसाफिर
ठोकरें इंसान को चलना सिखाती है
साधना में दिन तपे है रात दिन
कोशिशे ही लक्ष्य को नजदीक लाती है
सोचता रहता था पहले रात दिन
क्या खबर थी कोशिशे मंजिल पर लाती है
हार ने जब भी मेरे दिल को दुखाया है
तब कोशिशे अबभयास का मरहम लगाती है
कोशिशे कोशिश से बढ़कर क्या हुई
सदियों में कही एक "कविवर राहुल दीवाना "बना ॥॥