स्वभाव
मेरा स्वभाव मेरी किताबों से पूछो
दिल दर्द मेरा किताबों से पूछो
हाल बेहाल मेरा कविता से पूछो
पूछो जरा दर्द क्या होता है
जानो जरा बेहाल क्या होता है
सोचो जरा लगाव क्या होता है
जिसने किया नहीं मोहब्बत मेरी कविता से
कर नहीं सकता वो कुछ मेरे प्राणों को
सोच रहा हु बैठे वो आशिकी
दिल दर्द हो रहा है
जिसने सपनों में पाया नहीं तारे
वो चाँद का क्या ख्वाब देखे
जिसने सोचा नहीं झोपडी
वो मंजिल का क्या ख्वाब देखे
राहुल की मंजिलें देखती है ये कविता
मेरे सपनों में रहती है कविता
मेरे ख्वाबों को चूमती है ये कविता ॥॥॥
ऐ -ज़िंदगी
ऐ ज़िंदगी तू इतनी खुद्दार क्यों है
ऐ ज़िन्दगी तू इतनी बेजान क्यों है
न कुछ गिला है न कोई है शिकवा
बस ऐ ज़िन्दगी एक ही है शिकायत
दिए है जो गम तूने जवानी में
मत दोहरा अब तू उसे यहाँ
ऐ ज़िन्दगी तुझसे कितनी शिकायत है
तूने तो कभी मुझे देखा भी नहीं
इतना गम मुझे देकर भी तूने .
मै कैसे भूल जाऊ ऐ ज़िन्दगी ॥॥॥