स्त्री
दर्द बहुत सभाले है मैंने
सोचा था बड़े होकर कुछ बन कर दिखाउंगी
दिन रात एक करके कुछ दुनिया में नाम कर जाऊगी
लेकिन क्या बताऊ बड़े होते ही माँ बाप ने कर दी परायी
अपने उन चाँद आसुओ के साथ कर दी मेरी बिदाई
सोचा कैसे सब कुछ सह पाउगी माँ बाप की ये जुदाई
सब कुछ यहाँ का बहुत याद आएगा
माँ के हाथ का खाना और मिढ़ाई
भूलूंगी मैं कैसे अपनी किताबे और अपना भाई
अपनी बहन के साथ वोह खट्टी मीठी लड़ाई
लो अब एक पल में मैं तो हो गयी परायी
जिसने इतने दिन दिल से इतने मेहनत से पाला मुझको
आज उसी ने एक पल में मुझको कर दिया परायी !!
दर्द बहुत सभाले है मैंने मेरा नाम है स्त्री !!
मानो तो मैं माँ हु मानो तो बहन मानो तो अच्छी दोस्त मानो तो आपकी अर्धांगिनी !!
लेकिन क्या कहु किससे कहु दर्द अपना मैं
दर्द बहुत सभाले है मैंने मेरा नाम है स्त्री !!