नशीब
न रुक्ख बदलते है न मौसम बदलते है
जाने क्यों लोग ही बदल जाते है
पर हा मुझे याद् है इस ज़िन्दगी में
सुबह तो धुप तो निकलती है
लेकिन क्यों शाम को चली जाती है
न रुक्ख बदलता है न दीवानापन
पल पल में क्यों लोग बदल जाते है
बातों पर यदि मेरे यकीं नहीं होता
तो मैदान में उतर कर देख लो
सड़क पर चलने को तो
बहुत लोग चला करते है लेकिन
भीड़ में आगे कौन निकलता है
ये भीड़ ही बता सकती है
जाने क्या लिखा होता है नशीब में
जो भीड़ में ही कुचल कर मर जाते है
न रुक्ख बदलते है न मौसम बदलते है
बताओ क्यों जेनुअरी में गर्मी नहीं पड़ती
मई में ठंडी नहीं पड़ती
न रुक्ख बदलते है न मौसम बदलते है
ये ज़िन्दगी
कितनी प्यारी है ये ज़िन्दगी
कितनी न्यारी है ये ज़िन्दगी
काँटों पर चलकर सुधरती है ये ज़िन्दगी
काँटों में पलकर महकती है ये ज़िन्दगी
जी भर जीना पड़ता है ज़िन्दगी
खुशियों ग़मों को लेंना होता है ज़िन्दगी
कितनी प्यारी है ये ज़िन्दगी
हर मंजिले हर रास्ते देती है ज़िन्दगी
गम दुःख दर्द देती है ये ज़िन्दगी
खुशियों का हर पल बिताती है ज़िन्दगी
हर दिन हर रात बीतती है ज़िन्दगी
पल भर में बदल जाती है ज़िन्दगी
बदल जाते है रिश्ते भी ये ज़िन्दगी
कितनी मस्त भरी है ये ज़िन्दगी
हंसकर रोकर बिताना होता है ज़िन्दगी
सोकर उठकर गुजर जाती है ज़िन्दगी
कितनी प्यारी है ये ज़िन्दगी ॥॥