लालिमा
छोड़ जाना है ये लालिमा
अब तेरे इस सहर में
जिस तरह से बरसात
छोड़ देता है अपनी बूदों को
छोड़ जाना है मुझे प्रकाश
अब तेरे इस सहर में
जिस तरह से पौधे
नए पत्ते निकलते पुराने पत्ते छोड़ देते है
लेकर हमें जाना है चंदा
जो देता है सरे संसार को प्रकाश
मुझे बनकर के जाना है
तेरे इस सहर से हिरा
जिसे अँधेरे में भी रखने पर
उजाला ही उजाला होता है॥
फैला देना है मुझे जग में
अपने इस लालिमा को
खुद में छुपाये नहीं बैठना है
दुनिया में मुझे दर्शाना है ॥
कह जो मैं रहा हु ,करके दिखाने वाला है राहुल
छोड़ जाना है लालिमा
अब तेरे इस सहर में ॥॥