नई दिल्ली: लोकपाल की नियुक्ति को लेकर हो रही देरी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस मामले में 7 जनहित याचिकाएं दायर हुई हैं, जिनमें मांग की गई है कि कोर्ट सरकार को लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश दे. मंगलवार को करीब दो घंटे तक चली सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता कॉमन कॉज की तरफ से वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार जान-बूझकर कर लोकपाल की नियुक्ति में देरी कर रही है.
आखिर कब होगी लोकपाल की नियुक्ति ?
शांति भूषण ने साफ तौर पर कहा कि सरकार की नीयत साफ नहीं है और वो नियुक्ति करना ही नहीं चाहती है. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में लंबित रखा जाए ताकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर नज़र रख सके. इस देश में कानून का राज खत्म हो गया है. एक याचिकाकर्ता ने कहा कि सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को नेता प्रतिपक्ष मान लिया जाए ताकि लोकपाल की नियुक्ति हो सके. लोकपाल एक ऐसा कानून है जो नागरिकों के हक को मजबूत करता है इसलिए लोकपाल की नियुक्ति जल्द से जल्द होनी चाहिए. जिसके बाद सरकार ने संसद में लंबित संशोधनों का हवाला दिया. सराकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से संसद के काम में दखल ना दने की बात कही.
नेता प्रतिपक्ष का होना जरूरी
लोकपाल बिल में 20 संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं, जो अभी तक लंबित हैं इसलिए फिलहाल ये नहीं हो सकता. रोहतगी ने कहा कि नियुक्ति के लिए नेता प्रतिपक्ष का होना जरूरी है और फिलहाल कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है. कॉमन कॉज की तरफ से शांति भूषण ने बहस करते हुए कहा कि ये बहुत गलत और सोचनीय है कि औपचारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष ना होने की वजह से लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो सकती.
विपक्षी दल के नेता को करें शामिल
लोकपाल की नियुक्ति के बारे में कहते हुये प्रशांत भूषण ने कहा कि यह संसद के बाहर की प्रक्रिया है, जिसमें नेता प्रतिपक्ष औपचारिक रूप से ना भी हो तो सबसे बड़े विरोधी दल के नेता को शामिल करके नियुक्ति की जा सकती है. कोर्ट ने सुनवाई के बाद फ़ैसले को किया सुरक्षित.