ये कहानी मैंने आज के उन बुजुर्ग माँओं को समर्पित की है जो सब कुछ लूटा देने के बाद खुद लूट जाती हैं।
ये सब वास्ताविकता से प्रेरित हर माँ के आँचल कोसच्चे श्रदा सुमन अर्पित है जो इस विकट विपदा में भी अपना जीवन जी रही है।
कृपया एहसासों के चोले को ओढ़कर पढे तभी मन के उन्माद की कसक आपके आँसू को मोती बना सकती है।
कल रात
एक ऐसा वाकया हुआ
जिसने मेरी ज़िन्दगी के
कई पहलुओं को छू लिया.
मैं
न चाहते हुए भी
वो सबकुछ सोचने पर
बार बार बाध्य हो जाता हूँ.
करीब 7 बजे होंगे,
शाम को मोबाइल की घंटी बजी,
कुछ तबियत सही न होने के
कारण मैं जल्दी घर आ गया था.
चाय की तलब लगी थी
तो चाय स्वयं ही बनानी पड़ी,
वही
चाय का कप मेरे हाथ में था.
मोबाइल उठाया
तो
उधर से रोने की आवाज़,
मैं तो घबड़ा सा गया,
फिर आवाज़ क्लियर हुई.
मैंने
शांत कराया
और पूछा कि
भाभीजी आखिर हुआ क्या,
उधर से आवाज़ आई..
आप कहाँ हैं,
और
कितनी देर में
आप रोहिणी आ सकते हैं,
मैंने कहा:-
"आप परेशानी बताइये..!"
और "भाई साहब कहाँ हैं...?"
"माताजी किधर हैं..?"
"आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन
उधर से
केवल एक रट
कि आप आ जाइए,
मैंने आश्वाशन दिया
कि कम से कम एक घंटा लगेगा.
मैंने अपनी चाय ख़त्म कर
टाई की नॉट को टाइट किया,
जूते पहने
और निकल गया.
जैसे- तैसे
पूरी घबड़ाहट में पहुँचा.
देखा तो
भाई साहब
(हमारे मित्र श्रीमान अशोक साहब
जो पटियाला हाउस न्यायालय में जज हैं)
सामने बैठे हुए हैं.
भाभीजी
रोना चीखना कर रही हैं,
10 साल का बेटा
रोहन भी परेशान है.
7 साल की बेटी
रोहिणी भी कुछ नहीं कह पा रही है.
मैंने
भाई साहब से पूछा
कि आखिर क्या बात है.
भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे.
फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये तलाक के पेपर,
ये कोर्ट से तैयार कराके लाये हैं,मुझे तलाक देना चाहते हैं,
मैंने पूछा
ये कैसे हो सकता है.
इतनी अच्छी फैमिली है.
2 बच्चे हैं.
सब कुछ सेटल्ड है.
प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है.
लेकिन
भाभीजी का रोना
और भाई साहब की खामोशी कुछ और ही कहानी कह रही थी.
मैं सवाल कर रहा था
लेकिन
भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे.
मैंने बच्चों से
पूछा दादी किधर हैं,
बच्चों ने बताया
पापा ने उन्हें 3 दिन पहले नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर दिया है.
मैंने घर के नौकर से कहा
मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ,
कुछ देर में चाय आई.
भाई साहब को
बहुत कोशिशें कीं पिलाने की.
लेकिन
उन्होंने नहीं पिया.
और
कुछ ही देर में वो एक मासूम
बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे.
बोले
मैं 3 दिन से
कुछ भी नहीं खाया हूँ.
मैं अपनी
61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
पिछले डेढ़ साल से
मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि अम्बिका (भाभीजी) ने कसम खा ली.
कि मैं
माँ जी का
ध्यान नहीं रख सकती.
हम लोगों से ज्यादा बेहतर
ये ओल्ड ऐज होम वाले रखते हैं.
ना तो
अम्बिका
उनसे बात करती थी.
और
ना ही मेरे बच्चे बात करते थे.
रोज़
मेरे कोर्ट से
आने के बाद
माँ खूब रोती थी.
नौकर तक भी
अपने मन से व्यवहार करते थे.
माँ ने
10 दिन पहले बोल दिया..
बेटा तू मुझे
ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट कर दे.
बहुत कोशिशें कीं
पूरी फैमिली को समझाने की
लेकिन किसी ने
माँ से सीधे मुँह बात नहीं की.
जब मैं 2 साल का था
तब पापा की मृत्यु हो गई थी.
दूसरों के घरों में
काम करके मुझे पढ़ाया.
मुझे
इस काबिल बनाया
कि आज मैं अपनी सोच
व मर्ज़ी के मुताबिक जी सकूँ.
लोग बताते हैं
माँ कभी दूसरों के
घरों में काम करते वक़्त भी
मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.
उस माँ को
मैं ओल्ड ऐज होम में
शिफ्ट करके आया हूँ.
पिछले 3 दिनों से
मैं अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ,
जो उसने
केवल मेरे लिए उठाये.
मुझे
आज भी याद है जब..
मैं
10th की परीक्षा में
अपीयर होने वाला था.
माँ मेरे साथ
रात रात भर बैठी रहती.
एक बार
माँ को बहुत फीवर हुआ
मैं तभी स्कूल से आया था.
उसका
शरीर गर्म था,तप रहा था.
मैं जब माँ के
गले लगा तो लगने नहीं दी.
फिर भी मैंने
उनको पकड़ लिया.
मैंने कहा
माँ तुझे फीवर है
हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है.
लोगों से उधार माँग कर
मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी तक पढ़ाया.
मुझे
ट्यूशन तक
नहीं पढ़ाने देती थीं कि
कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए.
कहते-कहते रोने लगे..
और बोले
जब ऐसी माँ के हम
नहीं हो सके तो हम अपने
बीबी और बच्चों के क्या होंगे.
हम
जिनके शरीर के टुकड़े हैं,
आज हम
उनको ऐसे लोगों के हवाले कर आये,जो उनकी आदत,उनकी बीमारी,
उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते,
जब मैं
ऐसी माँ के लिए
कुछ नहीं कर सकता
तो मैं किसी और के लिए
भला क्या अच्छा कर सकता हूँ.
आज़ादी
अगर इतनी प्यारी है
और माँ इतनी बोझ लग रही हैं,
तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ.
जब मैं
बिना बाप के पल गया
तो ये बच्चे भी पल जाएंगे.
इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ,
सारी प्रॉपर्टी
इन लोगों के हवाले करके
उस ओल्ड ऐज होम में रहूँगा.
कम से कम मैं
माँ के साथ रह तो सकता हूँ.
और अगर
इतना सबकुछ कर के माँ
आश्रम में रहने के लिए मजबूर है,
तो एक दिन
मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा.
माँ के साथ
रहते-रहते आदत भी हो जायेगी.
माँ की तरह
तकलीफ तो नहीं होगी.
जितना बोलते
उससे भी ज्यादा रो रहे थे.
बातें करते करते
रात के 12:30 हो गए.
मैंने
भाभीजी के चेहरे को देखा.
उनके भाव भी
प्रायश्चित्त और ग्लानि से भरे हुए थे.
मैंने ड्राईवर से कहा
अभी हम लोग नोएडा जाएंगे.
भाभीजी और बच्चे
हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
बहुत ज़्यादा
रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला.
भाई साहब ने
उस गेटकीपर के पैर पकड़ लिए,
बोले मेरी माँ है,
मैं उसको लेने आया हूँ,
चौकीदार ने कहा
क्या करते हो साहब,
भाई साहब ने कहा मैं जज हूँ,
उस
चौकीदार ने कहा:-
"जहाँ सारे सबूत सामने हैं
तब तो आप अपनी माँ के
साथ न्याय नहीं कर पाये,
औरों के साथ
क्या न्याय करते होंगे साहब.
इतना कहकर
हम लोगों को वहीं
रोककर वह अन्दर चला गया.
अन्दर से
एक महिला आई जो वार्डन थी.
उसने भी
उस समय किसी फॉर्मेलिटी
को करने से मना कर दिया.
उसने बड़े
कातर शब्दों में कहा:-
"2 बजे रात को
आप लोग ले जाके कहीं मार दें,
तो मैं
यीशू को क्या जबाब दूंगी..?"
मैंने
सिस्टर से कहा
आप विश्वास करिये.
ये लोग बहुत बड़े
पश्चाताप में जी रहे हैं.
अंत में
किसी तरह
उनके कमरे में ले गईं.
कमरे में जो दृश्य था,
उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.
केवल एक फ़ोटो
जिसमें पूरी फैमिली है
और वो भी माँ जी के बगल में,
जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.
मुझे देखीं तो
उनको लगा शायद बात खुले नहीं और संकोच करने लगीं.
लेकिन जब मैंने कहा
हमलोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी.
आसपास के कमरों में
और भी बुजुर्ग थे सब लोग
जाग कर बाहर तक ही आ गए.
उनकी भी आँखें नम थीं.
कुछ समय के बाद
चलने की तैयारी हुई.
पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये.
किसी तरह हम लोग
आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
सब लोग
इस आशा से देख रहे थे
कि शायद उनको भी कोई लेने आए,
रास्ते भर
बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे
लेकिन
भाई साहब और माताजी
एक दूसरे की भावनाओं को
अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे.
घर आते-आते
करीब 3:45 हो गया.
सुबह तो शायद
इस दुनियाँ में सबके लिए थी,
लेकिन
भाई साहब और उनके
परिवार का सबेरा सबसे अलग था.
माँ जी के
कमरे में हम सब ने
काफी समय साथ गुजारा.
भाभीजी भी
अपनी ख़ुशी की चाबी
कहाँ है ये समझ गई थीं.
भाई साहब के चेहरे पर
ख़ुशी की मुस्कान आने लगी.
मेरा भी
विदा लेने का समय हो गया था.
क्योंकि
अकादमी पहुँचकर
क्लास लेनी थी सो मैं चल दिया.
लेकिन
रास्ते भर वो सारी
बातें और दृश्य घूमते रहे.
कल उन लोगों ने
मेरे लिए डिनर का प्रोग्राम रखा था.
जाना नहीं हो पाया,
लेकिन माँ जी से
बहुत सारी बातें हुईं.(मोबाइल से).
|||||||%|||||||||||
माँ केवल माँ है.
उसको मरने से पहले ना मारें.
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏