पत्थर तराशता एक शख्श,
खुदा से मिलने की जिद् कर बैठा ।
हाथ लकीरो से भरे थे पहले,
मगर अब छालो से भर बैठा ।।
मोम की तरह अगर ,
पत्थर भी पिघल जाते..
हर किसी को जहां में,
खुदा फिर मिल जाते...।
ढूंनने जो चला,जिंदगी को मै,
जिंदगी से ही हाथ धो बैठे,
हाथ लकीरो से भरे थे पहले,
अब मगर छालो से भर बैठा ।
जब खुशियाँ थी,
तो पास कितने चेहरे थे,
हमको लगता था..
उनसे रिश्ते कितने गहरे थे..
दो घडी क्या मिला मैं गम से,
साथी पुराने सभी मै खो बैठा,
हाथ लकीरो से भरे थे पहले,
अब मगर छालो से भर बैठा।
खुशबू सी आ रही थी,
जिंदगी के गुलशन से..
रोशन था हर नजारा,
महकें हुए चमन से...
मुस्कराते-मुस्कराते क्या हुआ,
बस यूँ ही अचानक मैं रो बैठा,
पत्थर तराशता एक शख्स,
खुदा से मिलने की जिद् कर बैठा।
थक गया मैं,
देख-देख कर गुनाह होते हुए,
देखा हूँ मैं...
खुद को भी तबाह होते हुए,
घर से निकला बदले दस्तुरे-जहाँ,
घर का पता भी मैं खो बैठा,
पत्थर तराशता एक सख्स,
खुदा से मिलने की जिद् कर बैठा।
🙏🙏🙏🙏