नई दिल्लीः यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के हाथ मिला लेने की खबरों ने खांटी कांग्रेसियों को बेचैन कर दिया है। विचारधारा से पुराने कांग्रेसी कार्यकर्ता और नेताओं को महागठबंधन की बात रास नहीं आ रही। उन्हें डर है कि 27 साल बाद पहली बार कांग्रेस ऊर्जा बचाकर चुनाव में कूदी है और फिर सपा से गलबहियों स े यूपी में पार्टी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा सकता है। कहा जा रहा है कि महागठबंधन की बात लगभग तय हो चली है। कांग्रेस को कुल 403 में से अधिकतम 125 सीटें मिलेंगी। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस से विधानसभा चुनाव लड़ने का ख्वाब लगाए नेताओं की संभावना महज एक तिहाई ही बचेगी। क्योंकि हर सीट पर कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ेगी। ऐसे में जिन नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा, वे असंतुष्ट होकर कहीं और का रुख कर सकते हैं। उनके पास या तो बसपा में जाने का मौका होगा या फिर भाजपा में। कहा जा रहा है कि ऐसे असंतुष्ट नेता जिसकी लहर तेज दिखेगी उसी तरफ बहेंगे। ताकि कांग्रेस नेतृत्व को महागठबंधन के फैसले को गलत होने का अहसास कराया जा सके। कहा जा रहा है कि यूपी के आधे से ज्यादा जिलों के कांग्रेसी जिलाध्यक्ष महागठबंधन होने पर पद से इस्तीफा दे सकते हैं। क्योंकि वे समाजवादी पार्टी से गलबहियां हरगिज नहीं चाहते।
जब महागठबंधन ही करना था तो शीला को लाने की क्या जरूरत थी
यूपी में कांग्रेस के एक पूर्व विधायक इंडिया संवाद से कहते हैं कि भगवान करें महागठबंध न हो। क्योंकि इस बार कुछ उम्मीद की किरण जगी है कि पार्टी बेहतर करेगी। पीके और राहुल ने काफी मेहनत भी किया है। अगर महागठबंधन करना ही था तो दिल्ली से शीला दीक्षित को यूपी में लाकर मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की क्या जरूरत थी। अब महागठबंधन अगर होने पर अखिलेश सीएम चेहरा बनते हैं तो यह एक प्रकार से कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के सामने सरेंडर जैसा होगा।
जेब से लाखों लुटाने वाले नेताओं के होश उड़े
महागठबंधन की बात लगभग तय होने पर कांग्रेस से इस बार चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले नेता परेशान हो गए हैं। उनमें कांग्रेस नेतृत्व के प्रति गुस्सा भी देखा जा रहा है। क्योंकि महागठबंधन की स्थिति में केवल एक तिहाई सीटों पर ही कांग्रेस उम्मीदवार उतारेगी। ऐसे में हर सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने की संभावना ही खत्म हो जा रही है। जबकि हर सीट पर कांग्रेस को कम से दस से 15 दावेदारों के आवेदन मिले। कांग्रेस नेतृत्व की मंशा का हवाला देकर प्रशांत किशोर सभी दावेदारों से क्षेत्र में जनसंपर्क करने का निर्देश देते रहे। हर दावेदार खुद को सबसे मजबूत साबित करने के लिए पिछले छह महीने से प्रचार में पैसा फूंकता रहा। ऐसे में अब महागठबंधन की खबरों ने बेचैन कर दिया है। कहा जा रहा है कि अगर महागठबंधन के बाद जिन नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा वे कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा को सपोर्ट कर सकते हैं। जिससे कांग्रेस को लेने के देने पड़ जाएंगे