क्या लिखूं , किस पर लिखूं , सोच कर
मन विचलित सा हो जाता है ।
पर इस विवशता के पाश में भी अपनी कलम से कुछ कर जाता हूं।
महंगाई की मार ने सारा बजट बिगाड़ दिया आमदनी से ज्यादा खर्चा बढ़ा दिया
कैसे जीवन गुजारे , कैसे परिवार चलाए ,
ये सोचकर मन विचलित सा हो जाता है
शेयर मार्केट हो या स्वर्ण बाजार
आम आदमी के काम नहीं आते है ये व्यापार
इनके घटने बढ़ने से कोई फर्क नजर नहीं आता है ।
आटे ,दाल , और तेल से ही एक आम आदमी अपना परिवार चलाता है ।
हे गुजारिश आलाओ से सब के दाम बढ़ाओ पर रोटी ,कपड़ा और मकान पर ऐसा बजट बनाओ
ना बढ़े दाम कभी इनके हर परिवार को मिले ,तभी हम सभी खुश रह पाएंगे
आगे अपने परिवार का खर्च चला पाएंगे
एक खुश हाल जीवन जी पाएंगे ।
मुझे लगता है अच्छे दिन जरूर आयेंगे।
बढ़ती हुई महंगाई पर हम जरूर काबू पाएंगे ।
कवि कौटिल्य