विधार्थी के अरमान
कितने अरमान थे की हम स्कूल जाते
स्कूल का बस्ता कंधे पर उठाकर
बस स्टाप पर खड़े हो जाते।
कितने ही रोज सुबह बहाने बनाते
फिर मुश्किल से उठकर जल्दी जल्दी सारे काम निपटाते फिर स्कूल के लिए तैयार हो जाते
नही जाने का मन हो तो पेट दर्द का बहना बनाकर घर पर ही रुक जाते
स्कूल जाकर , दोस्तो को पाकर कितना खुश हो जाते
कितने अरमान थे की हम स्कूल जाते
अध्यापकों को किया प्रणाम और अपनी क्लास में बैठ जाते
करते पढ़ाई भी ,खेल कूद , दोस्तो से बाते ऐसे ही समय बिताते ।
घर आकर खाना खाकर सो जाते
फिर बस्ता इधर उधर रख मम्मी पापा से डांट भी खाते
फिर पढ़ाई में लग जाते ।
कितने अरमान थे की हम स्कूल जाते
पर अब सब कुछ बदल गया
एक साल हो गया ।स्कूल बहुत याद आता है ।
शिक्षकों से संवाद सहयोगी से विवाद बहुत याद आता है ।
अभी तो हाल ये है की चार दिवारी की बीच ही सारा वक्त निकल जाता है ।
मोबाइल पर खेलने में ही दिन निकल जाता है
लैपटॉप कंप्यूटर और मोबाइल से ही हर विद्यार्थी का नाता है ।
चाहे कितना ही हो बौद्धिक विकास
पर शारीरिक विकास रुक जाता है
कितने अरमान थे की हम स्कूल जाते
अब तो वक्त निकल गया
कुछ साथी विदा हुए स्कूल से
पाठ्य पठन बदल गया ।
पर हम सभी आज भी स्कूल को याद करते जाते है ।
चाहे कितने ही खुश हो ,फिर भी अंदर से खामोश नजर आते है
गया हुआ वक्त नहीं आएगा
बिना स्कूल के निकला हमारा साल
बहुत याद आयेगा ।
अब तो विनती है सरकार से हमे भी वैक्सीन जल्दी ही लगवाओ
जल्दी ही स्कूल खुलवाओ
वरना हमारी आने वाली नई पौध भी कुछ भी नही कर पाएगी
बिना स्कूल के कैसे पढ़ पाएगी
मोबाइल से कितना विकास कर पाएगी ।
कितने अरमान थे की हम स्कूल जाते
स्कूल का बस्ता कंधे पर उठाकर
बस स्टाप पर खड़े हो जाते।
स्वरचित कविता- लेखक
पवन कुमार शर्मा
कवि कौटिल्य
चित्तौड़गढ़