होलिका दहन
एक शहर में एक व्यापारी रहता था । उसकी पत्नी भी नौकरी करती थी । उनके एक लड़का था जिसका नाम पिंटू था । पिंटू पढ़ाई में अच्छा पढ़ने वाला बच्चा था । परंतु माता पिता की कार्य में अधिक व्यस्त होने के कारण पिंटू को समय नहीं दे पाते । पिंटू भी बस थोड़ा मोबाइल में कुछ खेल लेता और सो जाता था । रोज की यही दिनचर्या थी । एक दिन पिंटू के दादाजी और दादीजी गांव से शहर आए । पिंटू भी बहुत खुश हो गया । और दादा दादी के साथ समय बिताना उसे भी बहुत अच्छा लगता था । वो उनसे नई नई कहानी सुनता और बहुत खुश हो जाता । एक दिन पिंटू ने दादा जी से पूछा हम सिर्फ होली को रंगो का त्योहार मानते है । पर हम होली का त्योहार क्यू मानते है । दादाजी मुस्कुराए और कहा पिंटू आज में तुम्हे होलिका की कहानी सुनाता हूं। तुम्हे भी बहुत पसंद आयेगी ।
एक समय की बात है हिरण्यकशप नाम का एक राजा था । वह राक्षस कुल का राजा था । परंतु उसे ईश्वर के नाम से बहुत नफरत थी । एक बार उसने किसी देवता से युद्ध किया ।और युद्ध हराने के पश्चात उस देवता को बंदी बना लिया । ये बात ब्रम्हा जी को पता चली तो ब्रह्मा जी उन देवता को छुड़ाने के लिए ब्रम्हा जी आए तो हिरण्याकक्षप ने शर्त रखी कि हे ब्रह्मा जी आप मुझे अमरत्व का वरदान दीजिए । ब्रम्हा जी ने कहा की मैं ऐसा कोई वरदान नही दे सकता क्योंकि ये तो विद्या का विधान है जो आया है वो जायेगा। हा मैं तुम्हे ये वरदान दे सकता हूं कि तुम ना सुबह मरोगे न शाम को , न तुम्हे कोई देवता मरेगा और न इंसान । फिर क्या था ये बात हिरिण्यकशप को पसंद आई । और ब्रम्हा जी चले गए।
फिर क्या था राजा बहुत दंभी और क्रूर बन गया । मौत का डर उसे बिलकुल भी न था । वह सभी प्रजा पर अत्याचार करने लगा । मंदिर में जाने पर सभी को रोक लगा दी । सभी भक्तो को प्रताड़ित करने लगा । सभी प्रजा बहुत परेशान हो गई । और ईश्वर को याद करने लगी ।
हिरणकश्यप को एक पुत्र की प्राप्ति हुई । उनसे उसका नाम प्रह्लाद रखा । प्रह्लाद अपने पिता के बिलकुल विपरीत था । वो भगवान विष्णु का परम भक्त था । और उनकी पूजा किया करता था । अपने पिता को भी समझाता की आप भी भगवान विष्णु की पूजा किया कीजिए । परंतु राजा और गुस्से में आ जाता । उसने प्रह्लाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से बहुत रोका परंतु प्रह्लाद टस से मस नहीं हुआ ।
तभी अचानक हिरण्यकाशप के पास उसकी बहन आई । भाई ने बहन को सारी बात बताई । तब बहन ने कहा की मुझे एक वरदान प्राप्त है मुझे कोई आग नही जला सकती । में अगर प्रह्लाद को लेकर अग्निस्नान करू तो प्रह्लाद जल जायेगा । और मैं वापस बाहर आ जाऊंगी । भाई को ये बात पसंद आई । उसने वैसा ही किया। राजा ने अग्नि स्नान का आदेश दिया । महल के बीचों बीच अग्नि कुंड बनाया। उसमे सवा सौ किलो लकड़ियां लगाई । एक मन उसमे घी डाला । फिर होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर आई । और भुआ के साथ अग्निसनान की बात कही । प्रह्लाद ने भी भगवान हरि का नाम लिया और बुआ के साथ अग्नि कुंड में बैठ गया । थोड़ी देर बाद होलिका का पूरा शरीर आग में रख हो गया । प्रह्लाद अग्नि से जैसा गया वैसा ही वापस आ गया । राजा भी ये सब देख रहा था । वह चकित हो गया । और असमंजस में पड़ गया । कि क्या करे । और प्रह्लाद को पकड़ कर महल में ले गया । मरने पीटने लगा । प्रह्लाद सिर्फ हरि का गुणगान कर रहा था । तभी अचानक आकाश में बिजली कड़कने लगी । मानो कह रही हो की राजा तेरा समय आ गया । वही भोर हुए तो अचानक महल का के खंभा टूटा और उसमे सिंह के सिर वाले भगवान विष्णु ने अवतार लिया । और राजा हिरण्यकशप को दोनो हाथो से पकड़ कर चीयर दिया । और फिर भक्त प्रह्लाद को अपने गोदी में बैठाया ।
जब यह बात सारी प्रजा को पता चली । तो सभी ने भक्त प्रह्लाद की भक्ति की बहुत तारीफ की और राक्षस राजा के मरने से सभी खुश हो गए । और सभी ने रंग अबीर गुलाल से होली मनाई ।
कहानी से शिक्षा मिलती है । कि कभी इतना घमंड नहीं करना चाहिए । और प्रभु पर हमें भरोसा करना चाहिए । वो अपने भक्त की मदद जरूर करते है । बस सही समय होना चाहिए ।
पवन कुमार शर्मा
कवि कौटिल्य