आजकल के बच्चे अपने बचपन के आनंद को खो रहे हैं। ये दुनिया बदल रही है और उनके लिए नया और विभिन्न अनुभव मौजूद है, जो उन्हें अपनी समझ से पार होते हुए जीने की ज़रूरत होती है। बच्चों के लिए खेलना, उत्साह, नई चीजों का अनुभव करना, खुशी से बहना, इत्यादि अहम होता है।
हालांकि, आजकल के समय में बचपन समाप्त नहीं हो रहा है। बच्चों को स्कूल में जाना, घर का काम करना, पढ़ाई करना, सोशल मीडिया इस्तेमाल करना, टेक्नोलॉजी से परिचय होना जैसे बहुत से काम होते हैं जो बचपन के आनंद से वंचित करते हैं। इसलिए, हमें अपने बच्चों को बचपन का अनुभव दिलाने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें खेलने की जगह, संगीत, दोस्तों से मिलने की अवसर देना चाहिए। इससे न केवल उनका मनोवृत्ति स्वस्थ होगा बल्कि उनका शारीरिक विकास भी सही होगा।
बचपन जहाँ था खेलता घूमता, खुशी के गाने गाता चला जाता। खेलों का खूबसूरत संसार, अपनी आज़ादी का लुत्फ़ मानता।
लेकिन आज देखो क्या हो गया, इतनी भागदौड़ और कौशल बढ़ा गया। स्कूल, ट्यूशन, पढ़ाई, बोर्ड एक्जाम, जिंदगी में ज़िन्दगी को भुला गया।
सोशल मीडिया, फोन और इंटरनेट, सारी रात बिताने लगा है इसमें। जो नज़र में होता है वो उसका होता है, खुद को ज़िन्दगी से दूर कर लिया गया।
खेल नहीं रहे और जमा रहे शरीर, कभी तो निकालो इस चंदा ज़ेहन से आहें भर। बचपन की यादों को ताजगी से भर दो, खेलते-खेलते जीवन को जीने की सीख दो।
बचपन नहीं गुम हुआ है, आज़ादी का अहसास भी गवाह है। अपने बच्चों को खेलों से परिचित कराओ, उन्हें खुशी से बहला दो।
कवि कौटिल्य