लखनऊ:बहुजन समाज पार्टी की करारी हार और पार्टी का अस्तित्व समाप्त होने की स्थिति देखते हुये बहुजन समाज पार्टी को महीने की 11 तारीख की जगह रोज़ काला दिवस मनाना चाहिए ताकि 10 -15 वर्षों में पार्टी पुनः चुनाब लड़ने के काबिल हो सके।
बहुजन समाज पार्टी की नीतियों एवम कारगुजारियो से असंतुष्ट दलितों ने जिस प्रकार पार्टी का साथ न देकर मोदी और भाजपा में अपनी आस्था दिखाई है उससे साफ हो गया है कि आगामी 10 - 15 वर्षों तक बसपा से पलायन किया मतदाता वापस आने वाला नहीं है। मायावती के विश्वास पात्र स्वामी प्रसाद मौर्या और बृजेश पाठक जैसे सशक्त नेताओ द्वारा बीएसपी का साथ छोड़कर भाजपा में जाना दलित मतदाताओं को यह बताने के लिए पर्याप्त था कि अब मायावती का लगाव पार्टी हित में न होकर निजी हित में हो गया है। मायावती तथा उनके भाई के पास अकूत संपत्ति का खुलासा होने से इस बात के पुख्ता सबूत भी हो गये कि चंदे का धंधा और मोटी रकम लेकर टिकट देने का धंधा करने वाली मायावती समाज सेविका की जगह लक्ष्मी का रूप धारण करने लगी है।
कुछ समय पूर्व सोशल मीडिया पर वायरल हुऐ वीडियो ने इनके आलिशान महल का खुलासा कर दलितों के पैरों के नीचे से ज़मीन ही खसका दी। जो दलित जाड़ो में भी खुले आसमान के नीचे सोते है अपने को मसीह कहने वाली मायावती का महल देख उनसे विरक्त हो गया जिसका नतीजा 11 मार्च को देखने को मिला।
दलितों की 100 सीट काटकर धनवान मुसलमानो और माफियाओं को देना मायावती को खासा महंगा पड़ा। दलितों ने तो यह सब देखकर बीएसपी को वोट न देकर भाजपा को वोट देने का फैसला कर लिया वही मुस्लिम मतदाता भी मायावती के काम नहीं आ सके।
कुछ भी हो स्वंम मायावती की कारगुजारियो से त्रस्त खुद का वोट बैंक बिखर जाने से बहुजन समाज पार्टी का अस्तित्व ही समाप्त हो चला। इसी हताशा और निराशा में मायावती ने ईवीएम मशीनों पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया कि उसमें भाजपा वालो ने सेटिंग करा रखी थी कि किसी भी पार्टी को दिया जाने वाला वोट भाजपा को ही मिले।
इस हास्यास्पद बयान पर सबसे पहले पूर्व चुनाव आयुक्त कुरैशी ने ही माकूल जवाब दे दिया।चुनाओ आयोग से भी उत्तर मिल जाने के बाद भी मायावती उससे संतुस्ट नहीं हुई और कोर्ट जाने के साथ साथ प्रत्येक माह की 11 तारीख को काला दिवस मनाने की घोषणा कर दी है ।
बहुजन समाज पार्टी की हार,राजनीती से पार्टी का अस्तित्व समाप्त होता देख मायावती को चाहिए कि प्रत्येक माह की 11 तारीख के बजाए प्रतिदिन काला दिवस मनाकर पार्टी की कारगुजारियो पर मंथन कर ऐसा रास्ता अख्तियार करे जिससे पार्टी अगले 10-15 वर्षो में फिर से नया रूप लेकर चुनाव लड़ने लायक बन सके।