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मैं पायल..

महेन्द्र भीष्म

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3 जून 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 9789385476457

यदि हम साहित्य की रचनाशीलता के परिपेक्ष्य में देखें तो हिंदी समेत सम्पूर्ण भारतीय भाषाओं के आधुनिक काल में ही नहीं वरन किसी भी कालखण्ड में किन्नर समुदाय को लगातार दो बड़ी और महत्वपूर्ण कृतियाँ आजतक किसी और रचनाकार ने साहित्य जगत को नहीं दी हैं।इस संदर्भ में उपन्यासकार महेंद्र भीष्म की रचनाशीलता अनेकशः साधुवाद की पात्र है।महेंद्र भीष्म ऐसे पहले सम्वेदनशील रचनाकार हैं, जिन्होंने दो उपन्यास ही किन्नरों पर नहीं लिखे वरन जिन अनादूतों(किन्नरों) पर लिखा, उनकी बेहतरी के लिये एक एक्टिविस्ट के रूप में उनकी सक्रियता अनुकरणीय व सराहनीय है। कोई भी रचनाशीलता तब सराहनीय हो जाती है जब कलम के साथ-साथ लिखे हुए को जीने का उपक्रम करती दिखाई पड़ती है।युगीन दुर्व्यवस्था की सत्ता को पलटने की अपार सामर्थ्य ऐसी ही रचनाशीलता में होती है ।यही हमारे पूर्वज रचनाकारों ने किया और उसी का परिणाम है कि हम आज स्वतंत्र देश के सभ्य और प्रगति उन्मुख समाज में रह रहे हैं।यह विडंबना ही है कि सभ्य समाज पूरी तरह सभ्य नहीं हो पाया है । उपन्यास 'मैं पायल..' हमारे इसी सभ्य और प्रगतिशील समाज पर प्रश्नचिन्ह लगाता दिखता है। अनूठे कथा प्रवाह में बहा ले जाने वाला महेंद्र भीष्म का यह जीवनीपरक उपन्यास कई महत्वपूर्ण प्रश्नों को जन्म देता है और पाठकों की सोई सम्वेदना को झिझोड़कर जगा देता है 'किन्नर कथा' के बाद लिखा गया लेखक का यह उपन्यास नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। - डॉ. दया दीक्षित 

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