महेंद्र भीष्म द्वारा रचित किन्नर कथा उपन्यास हिंदी साहित्य की उन साहसिक रचनाओं में से एक है जिसने समाज को इस समुदाय को लेकर सोचने के लिए विवश किया है | किन्नर कथा उपन्यास उन रचनाओं की श्रेणी में आता है जिसने किन्नर समुदाय की वेदनाओं पर एक नयी जिरह को हवा दी है । इस उपन्यास के विषय में कई आलोचकों का मत रहा है कि इसकी कथावस्तु अतिनाटकीय है, या यूँ कहें कि बेहद फ़िल्मी है | शायद यही कारण है कि यह उपन्यास एक सफल फिल्म की भांति पाठक को प्रारंभ से लेकर अंत तक बांधे रखती है | भीष्म जी स्वयं ही स्वीकार करते हैं कि इस उपन्यास का कथा-सूत्र बचपन में सुनी गयी कहानी पर आधारित है | उपन्यास से किसी इनसाइक्लोपीडिया की तरह मात्र जानकारी की अपेक्षा करना उचित नहीं है | किन्नर कथा उपन्यास अपने पात्रों के माध्यम से किन्नर जीवन की समस्याओं, समाज का उनके प्रति रवैया, प्रशासन की उदासीनता, परिवार से विस्थापन की व्यथा के अतिरिक्त सामाजिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक आदि पक्षों को उजागर करते हुए एक सकारात्मक बिंदु पर समाप्त होता है जहाँ इसके प्रमुख पात्र को अंतत: पूर्ण स्वीकार्यता प्राप्त होती है, अपने परिवार से, समाज से |
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