उपन्यासकार महेन्द्र भीष्म अपनी रचना- धर्मिता के प्रति प्रतिबद्ध रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं। आपने ऐसे विषयों पर अपनी कलम उठाई है, जिन पर सामान्यतः रचनाकारों का बहुत कम ध्यान जाता है। युद्ध पर आपका उपन्यास ‘जयहिन्द की सेना’ हो या हाशिये के लोगों की कथा ‘किन्नर कथा’ या ‘मैं पायल’ हो, जिसने लेखक को पाठकों के मध्य लोकप्रिय बनाया। सामाजिक यथार्थवाद की बुनियाद पर टिका लेखक का यह उपन्यास जीवन के अनेक मोड़, अनेक उतार-चढ़ाव के ग्राफ को दर्शाता हुआ पाठक की संवेदना को प्रगाढ़ करता है। यथार्थ के समीप होते हुए भी यह उपन्यास भाषा और शिल्प की दृष्टि से कसा हुआ है। इसमें अंकित घटनाएँ-प्रति घटनाएँ बहुत हद तक मानव की मनोदशा निर्धारित करतीं हैं और भविष्य की दिशा सुझाती हैं। ‘आख़िरी दरख़्त’ दो युवाओं के आस-पास घटित होते जा रहे समय काल की कथा है, जिनके अन्दर समाज में फैली कुरीतियों को दूर कर लोगों में जागृति लाना है। उपन्यास में उठे प्रश्न, सरोकार, संवेदना कहीं न कहीं पाठक को अपने अतीत की ओर ले जायेगी और यह सोचने पर विवश कर देगी कि अंततः जीवन की सार्थकता क्या है? यह जो देह मिली है उसने अभी तक ऐसे कौन-कौन से कार्य किये हैं, जिनके कारण ‘जीवन सार्थक हुआ’ यह कहा जा सके।
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