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मां की नाराज़गी

28 अक्टूबर 2024

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दीपक राजोरा की अन्य किताबें

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रचनाएँ
मां की ममता
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यह किताब मां की ममता को बड़े ही सुन्दर ढंग से समझाती हैं। इसमें कवि मां के विभिन्न भाव-भंगिमाओं के माध्यम से पाठकों को मां की ममता के महत्व को बड़े ही सारगर्भित व काव्यात्मक शैली में समझाता हैं। इसमें मां कभी डांटती है,तो कभी प्यार करती नजर आती है,इसके अलावा मां को ममता का अनमोल भंडार बताया हैं।
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मां

26 अक्टूबर 2024
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मां तेरी हर जरूरत, क्या मैं पुरी कर पाऊंगा... जब पुकारेगी मां,तो क्या मैं दौड़ा चला आऊंगा... हर समय मेरा ख्याल, कैसे रख लेती हों मां... मैं सोता भी रहूं तो मेरी सुरत कैसे तख लेती हों मां... खुद गी

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मां की बातें

26 अक्टूबर 2024
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मां की बातें भी कुछ, याद हमें दिलाती हैं... जीवन में कैसे जीना है, ये रोज हमें बतलाती हैं... कभी-कभी तो हमें भी,याद मां की आती हैं... आखिर मां की बातें ही हमें जीवन जीना सिखाती हैं... डांट भी

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मां तो आखिर मां होती है

27 अक्टूबर 2024
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देख गरीबी अपने लाल की, आखिर मां क्यों रोती हैं... सब रिश्तों से बढ़कर भैया, मां तो आखिर मां होती हैं... दोस्तों अपनों के खातिर मां, जाने क्या -क्या खोती हैं... खुन के अश्रु बहाकर भैया, मां तो आखि

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मां के ख्वाब

27 अक्टूबर 2024
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बेटा देखें ख्वाब इसलिए,निज ख्वाबों को भुल जाती हैं... खुशी -खुशी मां जिम्मेदारियों के, फंदे पर झूल जाती हैं... धुप देखकर लाल के , इसलिए पल्लू से छांव कर देती हैं... फिर क्यों शिक्षित बहुएं, मां क

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मां की डांट

27 अक्टूबर 2024
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मां की डांट में भी दोस्तों,प्यार असीम मिलता हैं... जब बेटा  मुस्कुराकर, अपनी मां के गलें मिलता हैं... डांट में भी मां आखिर, प्यार संजोकर रखती हैं... इसी आशा में बेटों की अखियां, मां की सुरत तखती

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मां ईश्वर का अंश

28 अक्टूबर 2024
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दोस्तों ईश्वर की मुरत, मां में सुबह-शाम रहती हैं... इसलिए तो हर को मां दुनियां भगवान कहती हैं... भगवान ना आये धरा पर, मां को भेज दिया... तकलीफ़ ना हों लाल को, मां की गोद की सैंज दिल...

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मां की नाराज़गी

28 अक्टूबर 2024
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मां का नाराज होना, कभी कभी सही होता हैं... ना मानें सही बात तो मां का दिल,मन ही मन रोता हैं... नाराज़गी में मेरी मां,कभी तो मुझे देखकर रो लेती हैं... कभी मेरी मां चिंता-मुक्त, निगाहें देखकर सो ले

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मां की याद

28 अक्टूबर 2024
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याद मां की आती है,दोस्तों सबकी आंखें भर आती हैं... कभी शाम तो कभी सुबह, दोस्तों घर की याद दिलाती हैं... बैठी पेड़ की छांव में,कभी तपती दोपहरी के गांव में... आखिर मां याद आ जाती हैं, विचारों के अल

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मां के लिए उपहार

28 अक्टूबर 2024
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इक दिन मैं स्कूल में, बैठा-बैठा कुछ सोच रहा था... मां का ख्याल कर खुद को, बार-बार नोंच रहा था... कि क्यों खुद का ख्याल मां नहीं रख पाती हैं ... लेता हूं उपहार मैं जब,दिवाली दोस्तों आती हैं...

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मां के साथ बिताए पल

29 अक्टूबर 2024
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मां के साथ बिताया हर लम्हा, दोस्तों मेरे लिए खास था... मां की ममता का ये सुनहरा, मेरे लिए अहसास था... स्कूल के फटें कपड़ों को, मां लड़-लड़कर सी देती थी... मेरे मना करने पर भी मां,रोटी में भरकर घी

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