नई दिल्लीः यूपी में हाथी की सवारी से उतरकर कमल का फूल थामने वाले उन्नाव के पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक ने बसपा में ब्राह्मणों की उपेक्षा के चलते पार्टी छोड़ने की बात कही है। 'इंडिया संवाद' से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि बसपा में पहले जो स्थान ब्राह्मणों का था, अब वह मुस्लिमों को मिल गया है। हालांकि इससे उन्हें कोई गुरेज नहीं, मगर दुख तब हुआ जब ब्राह्मण उम्मीदवारों का टिकट काटकर मुस्लिम कंडीडेट को तरजीह दिया जाने लगा। नसीमुद्दीन के कहने पर बसपा मुखिया मायावती ने इस बार 130 से ज्यादा टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दे दिए, जबकि 14 फीसद से अधिक आबादी वाले ब्राह्मण मतदाताओं वाले राज्य में सिर्फ 30 ब्राह्मण कंडीडेट ही उतारे गए हैं। इसी नाइंसाफी ने बसपा से मोहभंग कर दिया।
माया के फैसले से ब्राह्मण समाज के साथ बसपा को भी नुकसान
ब्रजेश पाठक ने कहा कि उन्होंने कई बार पार्टी आलाकमान को बताने की कोशिश की यूपी में ब्राह्मणों की उपेक्षा पार्टी को भारी पड़ेगी। क्योंकि 2007 में बहुमत की जीत ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही बसपा को नसीब हुई थी। मगर नसीमुद्दीन का प्रभाव इस कदर बसपा मुखिया पर रहा कि उन्होंने सच्चाई को न सुनना गवारा किया न समझना। इस बार जब अधिकांश के ब्राह्मणों के टिकट काट दिए गए तो जनता में संदेश गया कि पार्टी में अब ब्राह्मणों की जगह नहीं। जबकि 2007 के चुनाव में दलितों के साथ ब्राह्मणों का वोटबैंक जुड़ने से ही मायावती यूपी की सत्ता के सिंहासन तक पहुंचीं थीं।
ब्राह्मण समाज के हितों से समझौता करने की जगह पार्टी छोड़ने का फैसला
ब्रजेश पाठक ने इंडिया संवाद से बातचीत मे कहा कि मायावती व सतीश चंद्र मिश्रा ने बसपा में ब्राह्मणों को जोड़ने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप रखी थी। पार्टी में ब्राह्मण भाईचारा समिति का काम वे देख रहे थे। 2007 का जब चुनाव हुआ तो कुल 80 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था। जिससे पार्टी को बहुमत की जीत नसीब हुई। 2012 में छह टिकट काटकर संख्या 74 कर दी गई तो भी बुरा नहीं लगा। मगर, इस बार हद हो गई। जब 2017 विधानसभा चुनाव के लिए मुस्लिमों को 130-135 सीटों का प्रभारी बना दिया गया, जबकि ब्राह्णमों को महज 30 सीटों पर टिकट दिया गया। जो ब्राह्मण मेरे वजह से पार्टी में आए थे, जब उन्होंने मुझसे इस अनदेखी पर सवाल करना शुरू किया तो मुझे लगा कि समाज के हितों से समझौता नहीं करना चाहिए। इस नाते पार्टी को छोड़ने का फैसला किया। भाजपा में ब्राह्मणों, सवर्णों का सम्मान दिखा तो कमल का फूल थामने का फैसला किया।