2 मई 2017
दिल की कलम से... -----------------------एक मई, 2017-------------------'मजदूर'--------- ""यूँही लेटा देख रहा था, उजाले के रखवालों को. रात की चादर पे उल्टा लटके, जागते तारों को. फिर आँखें बोझिल हुई, कुछ तस्वीरे चमक उठी. एक सुंदर स्वप्न की कली