सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो,
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो।
इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो,
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो।
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं,
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो।
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता,
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो।
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।
हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश,
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो।
कहीं नहीं कोई सूरज, धुआँ धुआँ है फ़िज़ा,
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो।
(मशहूर शायर और गीतकार निदा फ़ाज़ली)