कभी अश्कों से सींचा है कभी ख़्वाबों में ढाला है,
तुम्हारे दर्द को हमने बड़ी शिद्दत से पाला है Iमेरी आँखों के शीशे में कभी तो खुद को आके देख,
झुकी पलकों में तेरी ही उदासी का हवाला है Iतेरी यादों से है आबाद ये वीराना ख़्वाबों का,
यही दुनिया है अब मेरी यही मेरा शिवाला है Iतेरे काँधे पे सर रखके, कभी रोकर बताएँगे,
तेरी दीवानगी में किस तरह ख़ुद को संभाला है Iवफ़ा की राह पर चलते जहाँ पर खो गए थे तुम,
वहां गुल अब भी खिलते हैं वहां अब भी उजाला है I─शीतल बाजपेयी
‘के’ ब्लाक, किदवई नगर, कानपुर I