रंग भरने से तो तस्वीर नहीं बोलेगी,
मौत ज़िद्दी है बड़ी होठ नहीं खोलेगी।
जिसमें पासंग न हो ऐसा तराज़ू लाओ,
ज़िन्दगी झूठ को अब और नहीं तौलेगी।
मेरी आवाज़ में अमृत तो नहीं है लेकिन,
मेरी आवाज़ कभी ज़हर नहीं घोलेगी।
शोर सन्नाटे का दब भी गया सरगम में अगर,
तेरी आवाज़ मेरे साथ-साथ हो लेगी।
अच्छे शेरों पे भी 'गर शांत रही ये महफ़िल,
ये ग़ज़ल जा के अकेले में कहीं रो लेगी।
-देवकी नंदन 'शांत'