हमने-तुमने
मिटटी की
गोल गुलाबी
गुल्लक में
कुछ ख्वाब
छिपा कर रखे थे ।
कुछ दिन रीते,
कुछ मौसम बीते...
कल शाम
तोड़ दी
गुल्लक वो
एक तनहा
उदास लम्हे ने ।
सब के सब
वो ख्वाब अब तलक,
फूल बन गए ।
कभी आकर
ले जाना
उसमें से तुम भी,
जितने जी चाहे...।
-ओम प्रकाश शर्मा