ढूंढने मंज़िल चले तो उम्र भर चलते रहे,
हम तेरे साये की ख़ातिर धूप में जलते रहे .
दूर तक उसने हमें आवाज़ दी पीछा किया
ज़िन्दगी को हम मगर हर मोड़ पे छलते रहे .
वो परीशाँ होके दामन झटक कर चल दिया,
हम खड़े राहों में अपने हाथ ही मलते रहे .
आँसुओं से दर्द के सहरा को हम सींचा किये,
ग़म हमारे दिल ही दिल में फूलते-फलते रहे .
हमने भी छेड़ा न फिर पलकों पे बैठी नींद को,
'शांत' बच्चे की तरह कुछ ख्वाब थे पलते रहे.-देवकी नंदन 'शांत'