रहने दो न दोहराओ वही बात पुरानी,
अब लगती है मुझे झूठी परियों की कहानी
हर पेट के जंगल में यहाँ भूख जले है
होठों पे जहाँ प्यास है आँखों में है पानी
हफ़्तों जहाँ चूल्हा नहीं जलता ये वो घर है
आती नहीं बिस्तर पे जहाँ नींद सुहानी
ज़िंदा हैं वही मौत से जो डरते नहीं हैं,
आए न बुढ़ापा जिन्हें आए न जवानी
कहना न हो मुमकिन तो मुझे 'शांत' बता दो
मैं दर्द भी पढ़ लेता हूँ चेहरे की ज़ुबानी
-देवकी नंदन 'शांत'