वफ़ा की राह का आंसू कभी शबनम नहीं होता,
ये वो बरसात है जिसका कोई मौसम नहीं होता I
बदलते दौर में बदली हैं रिश्तों की भी सीमाएं,
क़दम दो-चार ही चलते हैं इनमें दम नहीं होता I
ख़ुशी देकर तुझे जो हँस के तेरा तंज सह जाये,
न समझो उस हमदम को कोई ग़म नहीं होता I
ये सच है वक़्त की परतें बुरी यादें मिटाती हैं,
मगर लफ़्ज़ों के ज़ख्मों का कोई मरहम नहीं होता I
मेरी हर हार पर हिम्मत मुझे वो दे के जाती है,
दुआएँ माँ जो देती है तो जज़्बा कम नहीं होता I
─शीतल बाजपेयी
के ब्लाक, किदवई नगर कानपुर Iसाभार : ‘मातृस्थान’