नई दिल्ली : रिलायंस द्वारा शुरू की गई जियो सर्विस ने केंद्र मोदी सरकार को एक अलग मुसीबत में डाल दिया है। टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि वह आगामी स्पेक्ट्रम नीलामी से दूरी बना सकती हैं। जहाँ रिलायंस के सामने टिके रहने के लिए एयरटेल, वोडाफोन और आईडिया जैसी टेलीकॉम कंपनियां अपने टेरिफ रेट को घटाने पर मजबूर हैं वहीँ मौजूद दौर में टेलीकॉम कंपनियों पर 4 लाख करोड़ का कर्ज है। अब मुसीबत टेलिकॉम कपनियों के अलावा सरकार के सामने भी आ खड़ी हुई है क्योंकि टेलीकॉम कंपनियां इस माहौल में स्पेक्ट्रम की नीलामी ने ज्यादा आक्रामक तरीके से बिडिंग नहीं कर पाएंगी और वह सेलेक्टिव बिडिंग करेगी। जानकारों की माने तो ऐसे में सरकार को इस बार स्पेक्ट्रम की नीलामी से मात्र 70 हजार करोड़ से लेकर 80 हजार करोड़ तक ही मिलेंगे।
टेलीकॉम कंपनियों पर इस बात का भारी दबाव है कि वह कैसे अपने ग्राहकों को रिलायंस जियो की तरफ जाने से रोके। इसलिए एयरटेल, वोडाफोन और आईडिया जैसी कंपनियां अपने टेरिफ रेट बदलने को मजबूर हैं। टेलीकॉम कंपनियों को कॉलड्राप के मामले में छोटी दिए जाने के पीछे भी यही तर्क था। अदालत में टेलीकॉम कंपनियों के वकील कपिल सिब्बल जस्टिस कुरियन जोसेफ व आर एफ नरीमन की पीठ से कहा कि TRAI के अनुसार हम हर दिन 250 करोड़ रुपए कमा रहे हैं लेकिन कहीं बात का जिक्र नहीं है हम पर भारी कर्ज बोझ है।
चीन में फ्री स्पेक्ट्रम का जिक्र किया था
सिब्बल का कहना था कि टेलीकॉम कंपनियों को 3.8 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज चुकाना है। जबकि इन कंपनियों को स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए 45,000 करोड़ देने पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा, हम कुछ भी हासिल नहीं कर रहे हैं। सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि ट्राई भारत की तुलना चीन से कर रहा है लेकिन यह भी समझना होगा कि चीन में तीन शीर्ष टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम मुफ्त में दिया जाता है।