नई दिल्ली : विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चंद सीटों पर विजयश्री का पताका फहरा कर सूबे की सियासत में जोड़ तोड़कर बैठा कर मंत्री की कुर्सी हथियाने वाले राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का अब अपने राजनीति क गढ़ से पत्ता साफ होता हुआ दिखाई दे रहा है. और अब तो सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) ने राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के साथ तालमेल करने से भी मना कर दिया है. जिसके चलते रालोद की स्थिति इस बार चुनाव में बड़ी ख़राब दिखाई दे रही है.
सपा नहीं करेगी रालोद से गठबंधन
सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा ने गुरुवार को यहां बताया कि उनकी पार्टी अजित सिंह की अगुवाई वाले रालोद के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने काफी विचार-मंथन के बाद यह फैसला किया है. उन्होंने कहा कि सपा ने कांग्रेस के साथ तालमेल के लिये खुद बात की थी. कांग्रेस से कहा गया था कि वह रालोद से गठबंधन की बात करे. लेकिन रालोद अधिक सीटों की मांग कर रही थी. नंदा ने कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ तालमेल करके कुल 403 में से करीब 300 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
सीटों की मांग पर रालोद का सपा से गठबंधन का फंसा पेंच
सूत्रों के अनुसार खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनाधार रखने वाला रालोद गठबंधन के तहत ज्यादा सीटें मांग रहा था, मगर सपा इसके लिये तैयार नहीं थी. रालोद के वरिष्ठ नेता अनिल दुबे ने कहा कि हम अपनी पसंद की सीटें मांग रहे हैं, लेकिन उस पर बात बन नहीं रही है. दरअसल इससे पहले के घटनाक्रम में राष्ट्रीय लोक दल को जितनी सीटें समाजवादी पार्टी दे रही थी उससे वह ज्यादा सीटों की मांग कर रही थी. इसको लेकर बात अटक गयी और रालोद के साथ गठबंधन नहीं किया जा सका. बताया जाता है कि समाजवादी पार्टी ने इस पेंच के मद्देनजर कांग्रेस को अपनी कुछ सीटें राष्ट्रीय लोक दल को देने को कहा.
गठबंधन से रालोद को मिलता लाभ
फिलहाल यह बात साफ है कि इस बार रालोद का जाट वोटर दूसरे दलों की तरफ भागता दिख रहा है. ऐसे में सपा और कांग्रेस के साथ अगर उसका गठबंधन हो जाता तो उससे बड़ा लाभ हो सकता था, लेकिन गठबंधन ना होने पर रालोद को भारी नुकसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होता हुआ दिखाई दे रहा है.