नई दिल्लीः
मध्य प्रदेश में अगर लाख दावे के बाद भी कुपोषण खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, सूबा इस मामले में बिहार के बाद दूसरे नंबर पर है। यहां एक हजार में 42 बच्चे आज भी कुपोषित हो रहे हैं तो इसकी ठोस वजह भी है। दरअसल सरकार बच्चों और गर्भवती महिलाओं को घटिया पोषक आहार खिला रही है। निवाले के नाम पर पिछले 12 साल से बड़ा खेल चल रहा है। जो कंपनियां घटिया सप्लाई कर रहीं हैं, उन्हीं तीन कंपनियों को पांच-पांच साल के लिए ठेका दिया जा रहा है।
12 साल में 78 सौ करोड़ का खेल, महिला मंत्री ने बहती गंगा में धोए हाथ
सत्ता पर पकड़ हो तो सप्लाई के ठेकों पर किस कदर एकाधिकार कर लिया जाता है, यह देखना हो तो मध्य प्रदेश का मामला हाजिर है। 12 साल से सिर्फ तीन कंपनियों के हवाले गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों का आहार सप्लाई का ठेका है। कागज पर दर्ज आंकड़े बोलते हैं कि अब तक 7800 करोड़ का आहार इन कंपनियों ने सप्लाई किया है। हकीकत है कि जो आहार इन कंपनियों ने सप्लाई किए, वो घटिया रहे। जिससे साठ प्रतिशत लाभार्थियों तक ही आहार पहुंच सक। मजे की बात है कि ठेका व्यवस्था से भ्रष्टाचार को देखते हुए सु्प्रीम कोर्ट ने जब आंगनबाड़ी सेंटर की समितियों के खाते में पैसा जारी करने का फरमान जारी किया तो ढाई साल बाद आर्डर के पालन को कैबिनेट ने मंजूरी दी। मगर भाजपा सरकार में महिला विकास मंत्री कुसुम इतनी ताकतवर रहीं कि उन्होंने कैबिनेट का फैसला बदल दिया। फिर से तीनों कंपनियों से सप्लाई की व्यवस्था लागू कर दी। यूं तो यह खेल बाबूलाल गौर सरकार से शुरू हुआ, मगर तीन दफा सरकार संभाल रहे शिवराज भी इस भ्रष्टाचार को दूर करने में रुचि नहीं ले रहे। जिस पर सवाल उठ रहा है। भारी भरकम ठेका पाने के बाद इन कंपनियों ने गरीब बच्चों के निवाले के लिए घटिया पोषक पदार्थ सप्लाई किया। वजन में घोटाला हुआ ही गुणवत्ता भी खराब रही। करोड़ों खर्च होने के बाद भी सूबे के आधे भी कुपोषित बच्चे खुराक नहीं पा सके।
तीन कंपनियों को ठेका दिया गया है
मध्य प्रदेश में सरकार ने 2012 में सप्लाई के लिए पांच साल के लिए तीन कंपनियों के साथ करार किया। ये कंपनियां हैं। एमपी एग्रो फूड इंडस्ट्रीज, एमपी एग्रोटॉनिक्स लिमिटेड और एमपी एग्रो न्यूट्री फूड प्राइमरी लिमिटेड। मजे की बात है कि निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए जान-बूझकर सरकारी सेक्टर की एमपी स्टेट एग्रो की हालत खराब की गई। एमपी स्टेट एग्रो में उत्पादन कम करने का खेल चला। 2005-06 में 4775 मीट्रिक टन से घटकर उत्पादन 1877 मीट्रिक टन रह गया। मांग और आपूर्ति में भारी अंतर दिखाकर निजी कंपनियों को जोड़ने का रास्ता तैयार किया गया।
मेज की बात रही कि जो एमपी एग्रो न्यूट्री फू 2005 में 3816 मीट्रिक टन उत्पादन करती थी, सरकार से जुड़ने के बाद 5902 मीट्रिक टन आहार बनाने लगी.
अफसर ने किया विरोध तो मंत्री ने कर दिया तबादला
जब एमपी स्टेट एग्रो को जान-बूझकर खस्ताहाल करने की योजना बनी तो तत्कालीन जीएम रवींद्र चतुर्वेदी ने विरोध शुरू कर दिया। उन्होंने ऊपर पत्र व्यवहार भी करना शुरू किया कि निजी कंपनियों को आहार सप्लाई से जोड़ना गलत है। एमपी स्टेट एग्रो की बेहतरी पर काम होना चाहिए। इससे नाराज शासन ने जीएम रवींद्र चतुर्वेदी का तबादला कर दिया।
2004 से कमाई कर रहीं कंपनियां
खास बात है कि मध्य प्रदेश में पोषक आहार वितरण करने वाली कंपनियों का 2004 से सिक्का चल रहा है। हर बार सरकार में यही तीनों कंपनियां रसूख के दम पर टेंडर हथिया रहीं। यह हाल तब है जबकि मध्य प्रदेश के कुपोषण के मामले में बिहार के बाद दूसरे स्थान पर है। जहां 42.8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं। यहां के एक हजार में 51 बच्चे साल भर भी नहीं जीते।
भ्रष्टाचार रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आर्डर को भी नहीं माना
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2004 में भ्रष्टाचार की आशंका पर सप्लाई में ठेकादारी व्यवस्था खत्म करने का निर्देश दिया। निर्देश के मुताबिक पोषण आहार की धनराशि आगनबाड़ी कार्यकर्ता और मातृत्व समिति के खाते में जमा कराया जाए। ताकि स्थानीय स्तर पर खरीदकर पोषण आहार बच्चों और गर्भवती महिलाओं को दिया जा सके। 2004 में यह आदेश हुआ। करीब 27 महीने तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश मध्य प्रदेश सरकार दबाए बैठी रही। इसके बाद 2007 को कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में ठेकादारी खत्म कर नई व्यवस्था अपनाने को मंजूरी दी। फिर 15 फरवरी को निर्देश जारी कर विभाग को योजना धरातल पर उतारने का निर्दश दिया
सात दिन में बदल दिया आर्डर
15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप पोषण आहार का पैसा समिति के खाते में जमा कराने का फरमान जारी हुआ। मगर निजी कंपनियों से सांठ-गांठ हुई तो हफ्ते के भीतर तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री कुसुम मेहेदेले ने 27 मार्च को नया आर्डर जारी कर समितियों के खाते में पैसा भेजने के निर्देश पर रोक लगा दी। कहा कि अब फिर से जिलों को पोषक आहार की सेंट्रलाइज्ड सप्लाई होगी।