नई दिल्ली : लोकतंत्र के मंदिर संसद तक जनता अपने नुमाइंदों को अपने सवाल उठाने के लिए भेजती हैं लेकिन क्या सांसद जनता के सवाल संसद में उठाते हैं। यह सवाल इस आंकड़े के बाद और भी बड़ा हो जाता है जिसके अनुसार साल 2016 में फ़रवरी से मई के बीच हुए संसदीय सत्रों में सांसदों ने अपनी शेर और शायरी पर खूब ध्यान दिया। इस दौरान निचले सदन लोकसभा में 43 बार काव्य-पाठ के जरिये सांसदों ने अपनी बात कही।
आंकड़ों की माने तो संसद में किये गए कुल काव्यपाठ का 64 प्रतिशत हिस्सा बीजेपी के उत्तराखंड सांसद रमेश पोखरियाल 'निशंक'ने अकेले किया। 16वीं लोकसभा में रमेश पोखरियाल निशंक ने कुल पांच कविता एं पढ़ी। वहीँ कांग्रेस पार्टी का स्थान कविता पाठ में दूसरा रहा, पार्टी के सांसदों ने सत्र में कुल 14 बार कविताओं के जरिये अपनी बात कही। जबकि एनसीपी के सांसदों ने सदन में 3 कविताएं पढ़ी।
ऐसा नहीं है कि संसद में सांसदों की इन कविताओं में जनता के मुद्दे थे, कई बार सांसदों द्वारा अपने संबोधन में बोली गई कविताओं का जनता या उनके मंत्रालय का सीधा कोई लेना देना नहीं था। उदाहरण के लिए बीजेपी में अब राज्य मंत्री कृष्णा राज ने मार्च में रेल बजट के दौरान ये कविता पढ़ी-
''वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ,
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।
दूर रह पाए जो हम से, दम कहाँ मंजिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
वहीँ 14 मार्च 2016 को बीजेपी के ही सांसद भोला सिंह ने कविता कही-
''कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
आदमी यूं ही बेवफा नहीं होता,
तुझे वफ़ा याद नहीं, मुझे जफ़ा याद नहीं,
ज़िन्दगी और मौत यही दो तराने हैं,
एक तुझे याद नहीं
एक मुझे याद नहीं। ''