देहरादून: उत्तराखण्ड सचिवालय में अब पत्रकारों की नो एंट्री की तैयारी की जा रही है. क़रीबी सूत्रों कि मानें तो अब पत्रकारों को सचिवालय में प्रवेश पर नए नीयमों के नाम पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. यह पूरा मामला केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के एन एच 74 घोटाले पर लिखे पत्र के लीक होने के चलते शुरू हुआ है. जिसमें उन्होनें सरकार द्वारा सीबीआई जांच को लेकर लिखा था कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं इससे अधिकारियों के मनोबल पर असर पड़ता है जिसके बाद सरकार की बहुत किरकिरी भी हुई.
दरअसल, नितिन गडकरी का पत्र लीक होने से राज्य और केन्द्र की सरकार बचाव की मुद्रा में आ गई थी और कई बार तो इस सवाल से खुद सीएम त्रिवेंद्र रावत भी बचते नज़र आ रहे थे. हालांकि जिस अधिकारी के दफ़्तर से यह पत्र लीक हुआ था उस के पास तमाम वह पत्रकार बैठते हैं जो कवरेज में भले ही ज़ीरो रहें हो लेकिन सरकार से निकटता और घनिष्ठता ज़रूर बनाए रखते हैं.
क़रीबी सूत्रों कि् मानें तो सचिवालय में हुई मीटिंग में प्रमुख सचिव आनंद वर्ध्दन ने सूचना विभाग को सरकार की मंशा साफ शब्दों में बता दी है कि जल्द ही विभाग द्वारा जारी किये गए सभी एंट्री पासों को निरस्त कर दिया जाए. सरकार इसके लिए एक नई व्यवस्था लाने जा रही है जिसके तहत अब सचिवालय के पास को सचिवालय शासन जारी करेगा. जिसमें पत्रकारों को गाड़ी का पास नहीं दिया जाएगा. इतना ही नहीं पास केवल दैनिक अख़बार और न्यूज़ चैनल के पूर्णकालिक पत्रकारों को ही दिये जाएंगे. ख़बर तो यह भी है कि सरकार मान्यता प्राप्त पत्रकारों की एंट्री को भी प्रतिबंधित करने की फिराक़ में है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इसके पीछे सरकार की मंशा साफ है कि पत्रकार वही ख़बर छापों जो सूचना विभाग या मीडिया सेंटर से दी जाए. दरअसल, एक बार पास निरस्त होने को बाद नए पास बनने में लगभग 90 दिनों का वक़्त लगेगा जिसके बाद पत्रकारों को किसी भी ख़बर के लिए सूचना विभाग पर निर्भर रहना होगा और ख़बरें भी वहीं छपेंगी जो वह देगा. जिसके बाद नये पास बनने के वक़्त केवल उनके ही पास बनाए जाएंगे जिसकी एंट्री की स्वीकृति होगी. लेकिन सवाल यही कि जब नितिन गडकरी का लेटर अधिकारी ने खुद ही लीक करा हो तो ऐसे में पत्रकारों को रोककर वह क्या साबित करना चाहते हैं. इस फ़ैसले से सरकार की छवि पर क्या असर पड़ेगा इसका अंदाज़ा दिल्ली सरकार, राजस्थान सरकार या एविएशन मिनिस्ट्री के फ़ैसलों से लगाया जा सकता है. जहां बैन होने के बाद उनकी छवि एक कड़क शासक नहीं बल्कि तानाशाह की बन गई.
त्रिवेन्द्र सरकार अभी तक जितनी चाहे उपलब्धियां गिना रही है लेकिन सच यही कि नाक़ामियों की फ़ेहरिस्त लंबी है. मसला शराब को लेकर फ़ज़ीहत का हो या बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान न देने की बजाय स्कूलों में शिक्षकों के ड्रेस कोड, वन्दे मातरम का. पहाड़ों में स्वास्थय सेवाओं की बदहाली का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि गर्भवती महिलाओं ने सड़क पर बच्चों को जन्म देते हुये कईयों ने दम तक तोड़ दिया. शहरों से लेकर पहाड़ तक सड़कों में घंटो जाम पहले भी और अब भी. लोकायुक्त और तबादला एक्ट पर भी सरकार की जमकर किरकिरी हुई. अगर सीएम त्रिवेंद्र को इन सबसे बचना है तो उनको उन सलाहकारों से बचना होगा जो उनके इर्द गिर्द होकर उनका ही काम खराब करने में लगे हैं. बहरहाल, अब देखना यह है कि आने वाले वक़्त में यह फ़ैसला सरकार की छवि को कितना चमकता है क्योंकि यह वही बीजेपी है जो केजरीवाल के इस फ़ैसले को दिल्ली मे यह कहकर घेरती रही कि यह केजरीवाल की तानाशाही है लेकिन अपने इस फ़ैसले में कौन सा अनुकूलित तर्क दिया जाएगा इंतज़ार तो करना होगा.