‘राजधानी’ जिसके नाम में ही ‘राज़’ चिपका है, उसका रहस्यमयी होना लाज़िमी है। ऊपर से देश की राजधानी दिल्ली जिसके सीने में धौंकते हैं असंख्य दिल धकधक-धकधक। इन्हीं में एक दिल है ‘मेघना’। रोज़ी-रोटी की जुगत में उसके पिता को ठौर दिया दिल्ली ने। घुटने तक झालरदार फ्रॉक लहराती मेघना छुटपन में बहन-नैना, माँ-योगिता और अपनी गुड़ियों संग दिल्ली के दिल पर क़ाबिज़ हो गई। अभाग्य से पिता गुज़रे तो माँ ने बेटियों की सरपरस्ती में अकेले जवानी खपा दी। चुनौतियाँ उसे विरासत में मिलीं और साथ मिले झउवा भर के छल, पीठ पर वार। डिग्रियाँ बटोरकर उसने कैरियर की लगाम थामी ही थी कि यहीं एक हादसे के दौरान उसकी मुलाक़ात हुई मयंक से। मेघना को देखते ही उसके दिल की सारी घंटियाँ एक साथ झनझना उठीं। तभी दूसरा हादसा हुआ। औरों को बचाते हुए उसकी हथेलियाँ झुलस गईं और वो पहुँच गई सीधे कटघरे में। फिर शुरू पुलिस, अदालत और उनके कारनामे जिसे उपन्यास ने बारीकी से उजागर किया है। चक्रव्यूह में घिरी मेघना को यहाँ तक़दीर मिलवाती है अभिमन्यु से। क्या अभिमन्यु मेघना को चक्रव्यूह से निकाल पाएगा? क्या मयंक उसके सूने जीवन को स पाएगा? या मेघना सब दरकिनार कर चुन लेगी तनहाइयाँ? जानने के लिए पढ़िए...
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