नई दिल्लीः जिन नक्सली इलाकों में बंदूकें, मशीनगन कब गरजें किसी को पता नहीं। जहां जाने में पुलिस अफसर भी खौफ खाते हैं, वहां भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की साहसिक पहल करने जा रहे हैं। बीजद से बतौर राज्यसभा सांसद टिर्की यूं तो संसद में खेल औ खिलाड़ियों की बेहतरी के लिए अक्सर सवाले उठाते रहे हैं मगर अब वे अपनी कोशिशों को धरातल पर उतारने जा रहे हैं। उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के संवेदनशील नक्सल बाहुल्य जिलों में रूरल हॉकी चैंपियनशिप कराने जा रहे हैं। मकसद है कि इन इलाकों के युवाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना। यही वजह है कि उन्होंने नक्सल बाहुल्य जिलों के युवाओं से अपील की है। कहा है कि वे बंदूक छोड़ें और हॉकी स्टिक उठाकर हमारे साथ मैदान में उतरकर अपनी तकदीर बदलें।
25 हजार युवाओं को प्रतियोगिता से जोड़ने की तैयारी
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की की ग्रामीण हाकी चैंपियनशिप का उद्घाटन उड़ीसा के राउरकेला में होगा। फिर 10 दिसंबर को उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले में भी आयोजन होगा, जहां से खुद दिलीप टिर्की नाता रखते हैं। इसके अलावा पड़ोसी झारखंड और छत्तीसगढ़ के नक्सल बाहुल्य इलाकों में भी आयोजन होंगे। प्रतियोगिता में करीब 15 सौ टीमों से जुड़े करीब 25 हजार युवा हिस्सा लेंगे। एक प्रकार से देखें तो नक्सली इलाकों में इतनी संख्या में युवाओं को खेल से जोड़ना बल्कि उपलब्धि है।
क्या कहते हैं दिलीप टिर्की
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की कहते हैं कि रूरल हाकी चैंपियनशिप निश्चित तौर पर माओवादी इलाकों के युवाओं का दिल परिवर्तन करने का काम करेगी। खेलों से जुड़ने पर युवाओं में टीम भावना का विकास होगा। स्पोर्ट्स स्पिरिट से आपसी सहयोग की भावना विकसित होगी। हमारा मकसद है कि जिन युवाओं को नक्सली नेता बहकार उनकी जिंदगी बर्बाद कर देते हैं, उसे रोकना है। खेल एक रचनात्मक विधा है। इससे जुड़कर नक्सली इलाकों के युवाओं के व्यक्तित्व का विकास होगा तो वे अपने घर, समाज, राज्य और देश की तरक्की में अहम योगदान निभा सकते हैं।