4/3/2022
मेरी डायरी आज मैं सबसे पहले अपने मन की खुशी को व्यक्त करूंगी।आज सभी ने मेरी दोनों रचनाओं की बहुत प्रशंसा की मन में खुशी की लहरें उठ रहीं हैं मैं अपनी बड़ी और छोटी बहनों, और भाइयों का तहेदिल से धन्यवाद ज्ञापित करतीं हूं कि, उन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरी रचनाएं पढ़ी और मेरा मनोबल बढ़ाया। क्योंकि लेखन के क्षेत्र में मैं अभी उस शिशु की तरह हूं जिसने अभी चलना भी नहीं सीखा है। मैं यहां किसी का नाम इसलिए नहीं लिख रहीं हूं क्योंकि अगर गलती से भी किसी का नाम रह गया तो मैं स्वयं को माफ़ नहीं कर पाऊंगी। क्योंकि सभी मेरी कहानी और कविताओं को अपना समय देते हैं और मेरे उत्साह को बढ़ाते हैं। इसलिए मैं सभी की ऋणी हूं।
आज का विषय जिस पर मैं कुछ चर्चा तुमसे करूंगी चलो सैर को चलें,हर व्यक्ति का सैर-सपाटा करने का मन होता है पर ज्यादा लोग समयाभाव के कारण सैर के लिए नहीं जाते।यह तो हुई साधारण सैर की बात जो लोग सुबह शाम अपनी अच्छी सेहत के लिए करते हैं।
पर आज मैं यहां मन की सैर-सपाटे पर कुछ अपने मन की बात तुमसे करूंगी।लोग बाहर सैर के लिए जाते हैं पर उन का सिर्फ़ शरीर उनके पास होता है मन वह घर में ही छोड़कर आते हैं।
अब तुम यह कहोगी कि मैं पागल हो गई हूं जो ऐसा कह रहीं हूं अरे जब शरीर साथ है तो मन भी उसके साथ ही होगा।
नहीं डायरी जी ऐसा नहीं होता हम मन घर में ही छोड़ देते हैं जैसे अरे बहू घर में अकेली है वह जरूर मेरी बुराई मेरे बेटे से कर रहीं होगी। मेरे पतिदेव मेरे न रहने पर मीठी चाय पीते होंगे कौन मैं उन्हें देख रहीं हूं।
अरे याद आया आज मुझे मिसेज वर्मा के घर भी जाना है उनके घर सत्यनारायण जी की कथा है।
हम सैर करते हुए ऐसी बातें मन में लाते हैं।अब हम सैर करने आए हैं या घर वालों और बाहर वालों की आलोचना यह समझ ही नहीं आता।
जब-तक सैर शांतिपूर्ण तरीके से नहीं की जाएगी उसका कोई भी लाभ हमारे शरीर पर नहीं होगा तो फिर ऐसी सैर से क्या लाभ?
पहले लोग गृहस्थ आश्रम का पालन करने के बाद वानप्रस्थाश्रम ग्रहण कर लेते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि,वह अपने मन को शांत चित्त कर लेते थे।
उसके लिए वे अपने काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर ( ईर्ष्या) पर नियंत्रण कर लेते थे तब वह शारीरिक और मानसिक रूप से प्राकृतिक सौंदर्य को देखने और अपने मन को एकाग्र चित्त करने के लिए साधना करते थे।या सुन्दर प्राकृतिक स्थलों की सैर करते थे। इससे उनके मन को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान होती थी।
उस सकारात्मक ऊर्जा का उपयोग वह अपनी साधना में करते थे। शांतचित्त होकर जो भी कार्य किया जाता है। उसमें सफलता प्राप्त करना आसान हो जाता है।
हम जब मन कर्म और शरीर से सैर या साधना करते हैं तो हमें ईश्वर के नज़दीक जाने का अवसर प्रदान होता है। ईश्वर के दर्शन हो चाहे न हो फिर भी मन चित्त बिल्कुल शांत रहता है।
आज तुम से बहुत बक-बक कर ली अब बात करना बंद कर रहीं हूं। शुभरात्रि
डॉ कंचन
स्वरचित मौलिक
4/3/2022