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मेरी डायरी आत्ममंथन मार्च माह 2022 भाग 2

5 मार्च 2022

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दिन बुधवार
2/3/2022

मेरी डायरी कल मैंने तुम से ईश्वर की सत्ता के विषय पर कुछ मन की बातें की थी।आज पूरा दिन मैं बहुत व्यस्त रहीं मैं अपने नौकरी से सम्बंधित केस के सिलसिले में हाईकोर्ट लखनऊ चली गई थी।बस से न जाकर मैंने टैक्सी बुक की टैक्सी ड्राइवर टाइम से नहीं आया जब मैंने पूछा तो जैसे उस पर कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो बहुत लापरवाही से कहा मैडम देर हो कोई ठोस कारण भी नहीं बताया। रास्ते में उसने अपने लिए केले लिए उसने केले खाने के बाद छिलका बाहर सड़क पर फेंक दिया।
जब मैंने कहा यह क्या कर रहे हो? अगर कोई गिर गया तो? उसने जवाब दिया तो गिरने दो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।उसकी बात सुनकर मैं आश्चर्यचकित होकर उसका चेहरा देखने लगी।
उसके जवाब से मुझे आज का प्रतिलिपि के विषय का ध्यान आया उसी समय मैंने सोच लिया था कि,इस विषय पर लखनऊ से लौटने के बाद आज रात तुमसे बात करूंगी।आज का विषय है साधना क्या है इस पर मैंने एक छोटी सी कविता भी लिखी है। मैंने प्रतिलिपि और शब्द इन पर अपने छोटे और वरिष्ठ दोस्तों की कविताएं पढ़ी उस पर समीक्षा भी किया।सबकी रचनाओं में एक ही बात कहीं गई है कि, अपने कर्म, दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करना ही साधना है। जबकि हमारे समाज में उस टैक्सी ड्राइवर जैसे भी व्यक्ति हैं जो फिर अपने विषय में सोचते हैं और अपने कर्म और दायित्वों को ईमानदारी से पूरा नहीं करते इसका उन्होंने अफसोस भी नहीं होता अगर कोई उनको ग़लत काम करने से रोकें तो वह उस पर अमल नहीं करते बल्कि समझाने वाले को ही कहेंगे कि, आपको क्या पड़ी है?

इसी लिए शाय़द हमारे विद्वानों ने कहा है कि, उपदेश ऐसे व्यक्ति को दो जो उस उपदेश के महत्व को समझें और उस पर अमल करें।उस टैक्सी ड्राइवर की बात सुनकर मेरी मन बहुत ख़राब हो गया था।
आज मैं साधना विषय पर तुमसे बात करने जा रही हूं। साधना क्या है? और हम साधना कैसे करें?

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि, यदि हम अपने प्रत्येक कार्य को ईमानदारी से करें तो वह भी साधना है। हमारे शास्त्रों में पुरूषार्थ, और आश्रमों की बात कही गई है। पुरूषार्थ में धर्म अर्थ,काम, और मोक्ष की बात कही गई है।
आश्रम में गृहस्थ आश्रम को सबसे कठोर आश्रम बताया गया है।इस आश्रम का सच्चाई और ईमानदारी से पालन करने वालों को किसी पूजा,पाठ और साधना करने की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि गृहस्थ आश्रम में सभी नियमों का पालन एक साथ किया जाता है। जैसे,देव ऋण,पितृ ऋण, अतिथि ऋण के साथ साथ गृहस्थ धर्म का पालन किया जाता है।
जो व्यक्ति अपने गृहस्थ धर्म का पालन निष्ठा से करता है वह किसी साधना से कम नहीं है। दया, परोपकार, करूणा, और सबसे प्रेम करने वाला व्यक्ति भी साधक ही कहलायेगा।
क्योंकि किसी वन में जाकर तपस्या करना तो बहुत आसान है पर समाज में रहकर कठिन परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों का पालन करना बहुत मुश्किल है यह भी साधना है। यदि प्रत्येक व्यक्ति घर संसार छोड़कर वन में जाकर साधना करने लगे तो समाज का संतुलन ही बिगड़ जाएगा। ऐसा हमारे किसी शास्त्र में नहीं कहा गया है कि,घर गृहस्थी छोड़कर साधना करो।
साधना का साधारण अर्थ है अपने मन-मस्तिष्क को साधना अर्थात उसे अपने वश में रखना।जब हम अपने मनोभावों को नियंत्रित कर लेंगे तो हर कार्य सोच समझकर करेंगे इससे हमारे कार्य बिना व्यवधान के पूर्ण हो जाएगे।
अपने घर परिवार की जरूरतों को पूरा करना लोगों की सहायता करना।समाज और देश की उन्नति में सहायक बनना ही साधना है।आज इतना ही अब मुझे नींद आ रही है कल फिर तुमसे मिलती हूं।

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
2/3/2022


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रचनाएँ
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