8/3/2022
आज मैं तुमसे बहुत देर से मिलने आ रहीं हूं तुम्हें भी नींद आने लगी होगी पर मेरी थोड़ी सी बक-बक सुन लो फिर सो जाना।
आज सुबह मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी इसलिए घर के काम निपटाने के बाद एक बजे के लगभग प्रतिलिपि और शब्द इन को खोला उसके बाद कुछ रचनाएं पढ़ी उनकी समीक्षा की फिर एक लेख और एक कहानी लिखी उसके बाद सोचा था कि, कुछ और रचनाएं पढूंगी पर घर में कुछ मेहमान आ गए तो वह रात 10 बजे गए उसके बाद खाने का कार्यक्रम चला। इसलिए मैं जल्दी तुम्हारे पास आ नहीं सकीं नाराज़ न होना।
आज महिला दिवस है सभी ने बहुत अच्छी अच्छी कहानी और कविताएं लिखी पढकर मन प्रसन्न हो गया।
पर मैं सोच रहीं हूं कि, जैसा हम लिख रहे हैं या सोच रहे हैं क्या वास्तव में वैसा ही है। नहीं मेरी सखी ऐसा बिल्कुल नहीं है आज हम महिला दिवस मना रहें हैं पर महिलाएं कितनी खुशहाल और स्वतंत्र हैं यह हम सभी को पता है कुछ घरों को छोड़कर ज्यादातर घरों में औरतों का मानसिक और भावनात्मक शोषण हो रहा है और वह झूंठ का मुखौटा लगाए हुए हंस रहीं हैं क्योंकि यही उनकी नियति और उनके संस्कार हैं।
आज हम कहते हैं कि, महिलाओं को इज्जत स्वतंत्रता और अधिकार मिल रहे हैं मैं ऐसा नहीं कहती कि यह बिल्कुल गलत है पर उतना सच भी नहीं है जितना बताया जाता है।
मध्यम वर्गीय परिवार में आज भी महिलाओं का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण हो रहा है वह बाहर किसी से कुछ नहीं कहती बाहर लोगों के सामने यही बताने की कोशिश करतीं हैं की हमारे पति और परिवार के लोग हमारा बहुत सम्मान करते हैं।
पर घर के अंदर ऐसा नहीं है।
दूसरी बात जो मेरे मन में हमेशा खटकती रहती है वह यह है कि औरतों का मानसिक और भावनात्मक शोषण औरतें ही ज्यादा करतीं हैं।सास, जेठानी, ननद के रूप में मैं ऐसा नहीं कह रही की इसमें पुरुष शामिल नहीं हैं पर उनको भड़काने का काम और उनसे अत्याचार करवाने का काम औरतें ही करतीं हैं।
ऐसा मेरा मानना है अगर औरतों पर होने वाले अत्याचार को बंद करवाना है तो हम औरतों को ही संकल्प लेना होगा कि, एक औरत दूसरी औरत के रूप हो रहें अत्याचार में भागीदार नहीं बनेगी बल्कि उन्हें रोकने का प्रयास करेगी जिस दिन से हर औरत यह संकल्प उठा ले तो काफ़ी हद़ तक औरतों पर हो रहें अत्याचार कम हो जाएंगे।
पर औरतों को भी अपनी मर्यादाओं का उल्लघंन नहीं करना चाहिए।
आज इतना ही कल कुछ और बातें करूंगी।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
8/3/2022