नई दिल्लीः भले ही दूसरों के लिए सरकारी नौकरी आरामतलबी का दूसरा नाम हो, कामचोरी करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते, मगर मध्य प्रदेश के इंदौर जिला अस्पताल के इस चिकित्सक ने अनोखी मिसाल कायम कर दी है। 10 साल में कोई दिन ऐसा नहीं रहा जिस दिन ड्यूटी न की हो। हर दिन पोस्टमार्टम की ड्यूटी निभाई। अब तक करीब 10 हजार पोस्टमार्टम कर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज करा चुके हैं। ऐसे में दूसरे चिकित्सकों के सामने डॉ. भरत बाजपेयी एक रोल मॉडल के रूप में खड़े हुए हैं। हालांकि अफसोस है कि शिवराज सरकार के स्वास्थ्य राज्यमंत्री महेंद्र हार्डिया ने डॉ. वाजपेयी की बेमिसाल सेवा को देखते हुए शासन स्तर से सम्मानित कराने की घोषणा काफी पहले की, मगर इसके बाद सुधि नहीं ली। जिस पर शिवराज सरकार पर सवाल उठ रहे हैं।
बेटे को घोड़ी चढ़ाकर पोस्टमार्टम करने पहुंच गए
डॉ. भरत बाजपेयी सेवा के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं, यह उदाहरण देने के बाद और किसी नजीर की जरूरत नहीं पडे़गी। जब पिछले साल बेटे की शादी रही तो डॉ. वाजपेयी उस दिन भी ड्यूटी करना नहीं भूले। बेटे को घोड़ी पर चढ़ाने के बाद रस्म शुरू हुई तो वे जिला अस्पताल पहुंच गए और दो शवों का पोस्टमार्टम किया। दरअसल सदर बाजार इलाके में दो मौत हुई थी। इसमें एक मौत संदिग्ध हुई थी। मेडिकोलीगल का मामला होने के कारण इसे गंभीरता से लेते हुए डॉ. भरत बाजपेयी ने बेटे की शादी की भी परवाह न करते हुए पोस्टमार्टम ड्यूटी की परवाह की।
पोस्टमार्टम भवन बनने के बाद से कभी नहीं ली छुट्टी
दरअसल गोविंद वल्लभ पंत जिला अस्पताल में छह नवंबर 2006 को पोस्टमार्टम विभाग की स्थापना हुई। शुरुआत से ही डॉ. भरत बाजपेयी को पोस्टमार्टम प्रभारी की जिम्मेदारी मिली। तब से वे आज तक 10 साल बीत जाने के बाद भी एक दिन भी ड्यूटी से अलग नहीं हुए। लगातार सरकारी सेवा और करीब दस हजार पोस्टमार्टम के चलते मार्च 2011 में उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल हुआ।