नई दिल्लीः घाटी के कुछ युवा जहां हजार-पांच सौ रुपये लेकर जवानों पर पत्थर फेंककर अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं, वहीं उसी घाटी से रुवेदा सलाम जैसी लड़कियां निकलकर सफलता की इबारत लिख रहीं हैं। पत्थरबाज युवा जहां जिंदगी भर अलगाववादियों के टुकड़ों के ही मोहताज रहते हैं। वहीं पढ़ाई-लिखाई पर फोकस करने वाले युवा सरकारी अफसर बनकर घाटी के प्रति सोच बदलने का काम कर रहे हैं। रुवेदा का जिक्र इसलिए कि यह पहली ऐसी कश्मीरी महिला हैं , जिन्होंने दो बार यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की। पहली बार आइपीएस बनती है और फिर आइएएस भी बनकर पत्थरबाजी में जिंदगी बर्बाद करने वाले कश्मीरी युवकों की सोच पर प्रहार करती है। आज हम आपको इसी बहादुर लड़की से मिला रहे हैं, जिसने घाटी की हवा के विपरीत चलकर खुद को बाकी युवाओं के लिए रोल मॉडल बना दिया।
पहले की आइपीएस की नौकरी
2013 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफलता के बाद रुवेदा पहली कश्मीरी महिला आइपीएस बनीं। इसके बाद भी रुवेदा ने तैयारी जारी रखी। दोबारा यूपीएससी की परीक्षा में बैठीं तो इस बार रैंक अच्छी होने की वजह से आइएएस में सलेक्शन हुआ। जब आइपीएस बनीं थीं तो चेन्नई में तैनाती मिली। कुपवाड़ा जिले की रहने वालीं रुवेदा इससे पहले 2011 में कश्मीर प्रशासनिक सेवा परीक्षा भी पास करने में सफल रहीं थीं।
एलओसी के पास रहता है परिवार
रुवेदा का परिवार कश्मीर के बहुत संवेदनशील हिस्से में रहता है। जी हां नियंत्रण रेखा यानी एलओसी के पास रुवेदा पलीं-बढ़ीं हैं। रुवेदा का कहना है कि “भले ही आप श्रीनगर शहर में रह रहे हो यहां आपको मुश्किल हो ही जाती है। जब कभी अराजकता के माहौल की वजह से परिस्थितियां आपके हाथ से निकल जाती हैं। तब हमें जनता के गुस्से का सामना करना पड़ता है- कर्फ़्यू, अख़बारों पर पाबंदी और अध्ययन सामग्री उपलब्ध नहीं होती। आप पर एक मनोवै ज्ञान िक प्रभाव पड़ता है। क्योंकि आपको पता नही चलता कि इसके बाद क्या होने वाला है।” रूवैदा बताती हैं कि उनके इस ऊंचाइयों के पीछे उनके परिवार का हाथ है। उनके पिता ने हमेशा ही उनको प्रोत्साहित किया और कभी यह एहसास नही होने दिया कि वह एक औरत के रूप में पुरुषों की तुलना में कमज़ोर हैं। रूवैदा के पिता सलामुद्दीन बजद दूरदर्शन के उप निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वह कुपवाड़ा से श्रीनगर शहर वहां की आतंकवादी गतिविधियों से बचने के लिए आए। सलामुद्दीन अपनी बेटी पर गर्व करते हैं।
एमबीबीएस के बाद शादी का दबाव ठुकराकर बनीं अफसर
30 साल की रुवेदा ने संघर्ष की पथरीली डगर पर चलकर सफलता पर सफलता हासिल कीं। आइएएस, आइपीएस होने के पहले वे एमबीबीएस भी कर चुकीं। कामयाबी यूं ही आसानी से नहीं मिली। जब उन्होने एमबीबीएस की परीक्षा पास की तो उनके परिवारवालों और रिश्तेदारों ने उनपर शादी का दबाव बनाना शुरू कर दिया। एमबीबीएस में सफलता पाने के बाद शादी करके एक आम लड़की जैसी जिंदगी बिताने के बजाय रूवैदा ने अपने बुलंद हौसलों के दम पर ये कामयाबी हासिल की। रूवैदा ने अपने मेडिकल की पढ़ाई 2009 में शुरू कर दी थी। उन्होंने श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से अपनी डिग्री प्राप्त की।
पिछले कुछ सालों में कश्मीर घाटी में सरकारी नौकरियों के लिए युवाओं में काफ़ी रुझान दिखा है। रुवैदा सलाम की सफलता की कहानी एक नई पीढ़ी के लिए जहां आशा है, वहीं निश्चित रूप से कश्मीर घाटी में एक बदलाव की बयार है।
यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन ने सिविल सर्विस परीक्षा के नतीजे जारी कर दिए थे. इनमें से एक सफल कैंडिडेट हैं घाटी की रुवेदा सलाम। उनका नाम इसलिए भी बेहद खास बन पड़ा है क्योंकि वह दो बार इस परीक्षा को पास करने में सफल रहीं हैं।
सफलता का सफर
उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की आईपीएस रुवेदा ने अब सिविल सर्विसेज के सफल प्रतियोगियों में स्थान बनाकर एक और मुकाम हासिल कर लिया है. रूवेदा इससे पहले मेडिकल परीक्षा, कश्मीर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज (KAS) और इंडियन पुलिस सर्विसेज (IPS) की परीक्षाओं में सफलता हासिल कर चुकी हैं. पहली बार रुवेदा को आईपीएस की रैंक मिली थी और उन्होंने हैदराबाद के सरदार बल्लभ भाई पटेल एकेडमी से ट्रेनिंग पूरी की।
ट्रेनिंग के बाद रुवेदा को चेन्नई में असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया गया। कश्मीर घाटी की पहली महिला आईपीएस बनने के बाद भी रुवेदा यहीं नहीं रुकीं बल्कि अपने सपने को पूरा करने के लिए वह दोबारा यूपीएससी की परीक्षा में शामिल हुईं और इस बार भी सफलता हासिल की।
पिता का सपना किया पूरा
पिता का सपना पूरा किया डॉक्टर रुवेदा के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं जो उन्हें भीड़ से अलग करती हैं. उनके पिता उनसे अक्सर कहते थे कि उन्हें एक आईपीएस अफसर बनना है. पिता की बात उन्हें काफी प्रभावित करती थी और इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने एक आईपीएस बनने का सपना देखा और उसे पूरा किया। उन्हें पोएट्री का शौक है तो वह नए-नए तरह के पकवान भी बनाती हैं. स्थानीय लोगों से मिलने और उनकी संस्कृति के बारे में जानने को काफी उत्सुक रहती हैं.रुवेदा की मानें तो जैसे ही देश के बाकी हिस्सों में लोगों को मालूम चलता है कि आप कश्मीर से हैं तो उनके दिमाग में यह बात आ जाती है कि इसकी सोच जरूर देश के खिलाफ होगी। उन्हें इस मानसिकता को बदलना है और इसके लिए वह हमेशा कोशिश करती रहेंगी।