इंदौर : शहर कि पहली महिला एमबीबीएमस डाक्टर भक्ति यादव पिछले 68 साल के चिकित्सा कॅरियर में अब तक हजारों महिलाओं का प्रसव करा जुकी हैं. 1948 से वे लगातार काम कर रही हैं और उनकी इच्छा अंतिम सांस तक काम करने की है . इससे भी बड़ी बात यह है कि बतौर गायनेकोलाजिस्ट वे प्रसव कराने के लिए एक रुपया भी फीस नहीं लेती हैं. आज भी जूनियार या अन्य डाक्टर अपने कसेज में उनसे सलाह लेने आते रहते हैं. वह परदेशीपुरा स्थित अपने घर पर ही वात्सल्य नर्सिंग होम के नाम से क्लीनिक चलाती हैं.
एमजीएम कि पहली महिला डाक्टर
भक्ति का जन्म उज्जैन के पास महिदपुर में 3 अप्रैल 1926 को हुआ. 1937 के दौर में लडकियो को पढ़ाने की बात हर कोई सोच नहीं सकता था . खासकर गांव में तो बिल्कुल नहीं. मगर भक्ति के पढ़ने की इच्छा ने उसे महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एमजीएम) खिच लाया. इसी दौरान यहां एमबीबीएस का कोर्स शुरु हुआ था. उन्हें मेट्रीकुलेशन के अच्छे परिणाम के आधार एडमिशन मिल गया। कुल 40 छात्र एमबीबीएस के लिय चयनित किए गए, जिसमें से 39 लड़के थे और भक्ति अकेली लड़की थीं. भक्ति एमजीएम मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस की पहली बैच की पहली महिला छात्र थीं,1952 में भक्ति एमबीबीएस करके डॉक्टर बन गई. इसके बाद डा. भक्ति ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज से ही एमएस किया.
1957 में किया साथ पढ़ने वाले डाक्टर से प्रेम विवाह
1957 में ही डॉ. भक्ति ने अपने साथ ही पढ़ने वाले डाक्टर चंद्रसिंह यादव से प्रेम विवाह कर लिया. डा. यादव को शहरों के बड़े सरकारी अस्पतालों में नौकरी का बुलावा आया, लेकिन उन्होंने चुना इंदौर की मिल इलाके का बीमा अस्पताल. जहां वे आजीवन इसी अस्पताल में नौकरी करते हुए मरीजों की सेवा करते रहे. डा. यादव को इंदौर में मजदूर डॉक्टर के नाम से जाना जाता था.
पिछले 6 साल से पीड़ित हैं अस्टियोपोरोसिस से
2014 में डा. चंद्रसिंह यादव का निधन हो गया. 89 साल की उम्र तक वे भी गरीबों का इलाज करते रहे. डा. भक्ति को 6 साल पहले अस्टियोपोरोसिस नामक खतरनाक बीमारी हो गई, जिसकी वजह से उनका वजन लगातार घटते हुए 28 किलो रह गया. मगर उम्र की इस दहलीज पर भी उनके यहां आने वाले मरीज को वो कभी निराश नहीं करती. उनके बारे में कहा जाता है कि वे आखिरी समय तक कोशिश करती है कि प्रसव बिना आपरेशन के हो. डा.भक्ति को उनकी सेवाओं के लिए 7 साल पहले डॉ. मुखर्जी सम्मान से नवाजा गया.
आज भी रोज देखती हैं 2-3 मरीज
आज डा. भक्ति हर दिन 2-3 मरीज देखती हैं. जबकि उनके बेटे रमन भी डॉक्टर हैं और अपनी मां की सेवा में हाथ बटाते हैं. डा. रमन यादव भी अपने पिता और मां के नक्शे कदम पर चल रहे हैं. 67 साल की उम्र में वे भी इसी इलाके में गरीब परिवारों से नाममात्र की फीस पर गरीब मरीजों का इलाज करते हैं.