नई दिल्लीः एक जवान को सरहद की सुरक्षा में सीने पर गोली खाना मंजूर है, मगर साहब का जूता साफ करना और कुत्तों को टहलाने के लिए उसका जमीर इजाजत नहीं देता। मगर आर्मी हो या पैरामिलिट्री फोर्स। जवानों को सेवादारी के नाम पर अफसरों की निजी चाकरी करनी पड़ रही है। यह कहते-कहते सीआरपीएफ के 177 बटालियन के जवान मीतू सिंह राठौर फूट पड़ते हैं। आंखों में आंसू लिए मीतू सिंह राठौर कहते हैं कि वे सीआरपीएफ के कोई बागी नहीं हैं। मगर जुल्मोसितम बर्दाश्त नहीं है। सेना और अर्द्धसेना के प्रति उनके दिल में वही सम्मान है, जो पहली बार वर्दी पहनते समय मन में जागी थी। मगर तमाम ईमानदार अफसरों के बीच मौजूद कुछ भ्रष्ट अफसरों की करतूतों से सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेज की साख संकट में पड़ रही। जिससे नौकरी को खतरे में डालकर भी वह मीडिया से बातचीत कर जवानों के दुखड़े से सबको रूबरू कराने की पहल किए हैं। राठौर वही जवान हैं, जिन्होंने पिछले तीन साल में सीआरपीएफ के कई अफसरों के घरों का स्टिंग किया। जहां जवानों से बूट पालिश, कुत्ता टहलाने का काम कराया जाने का मामला आया। राठौर के स्टिंग से खुलासा हुआ कि मेस में किस तरह दोगुने दामों पर राशन की सप्लाई कमांडेंट की मिलीभगत से होती है।
तेजबहादुर के खिलाफ अन्याय हुआ तो दे दूंगा इस्तीफा
इंडिया संवाद से बातचीत में मीतू सिंह राठौर कहते हैं कि बीएसएफ जवान तेजबहादुर ने जान और जॉब दोनों खतरे में डालकर घटिया खाने का मुद्दा उठाया। समस्या दूर करने की बजाए उस पर पर्दा डाला जा रहा है। कैंसर छुपाने से और विकराल रूप धारण करता है। तेजबहादुर से प्रेरित होकर सीआरपीएफ जवानों की ओर से मैं भी समस्याओं से सरकार को रूबरू कराने के लिए आगे आया हूं। मेरा मकसद है कि फोर्सेज में सेवादारी के नाम पर जवानों का उत्पीड़न खत्म हो। जवानों की शिकायतों की सुनवाई के लिए उचित तंत्र बने। ताकि उन्हें अपनी परेशानी बताने के लिए मीडिया या सोशल मीडिया का सहारा न लेना पड़े।