नई दिल्ली: आनंद ओझा जी हां यही नाम है यूपी पुलिस में TSI पद पर तैनात उस थानेदार का जिसकी फिल्म हीरोगिरी जल्द ही रिलीज होने वाली है. फिल्म में आनंद नायक का क़िरदार अदा कर रहे हैं. लेकिन दरोगा से लेकर एक्टर बनने के पीछे भी एक कहानी है. आनंद घर से 13 रुपए और नायक बनने की चाह को लेकर मुंबई भागे थे.
आखिर कैसे बन गए थे दारोगा
दरअसल, इंटर्व्यू में आनंद ने कहा कि वह , ''बाबू जी की बात सुनकर बीए कम्पलीट करने के बाद मुंबई निकल गए. मुंबई जाने के दौरान मैं बनारस रुका, वहां मेरे कुछ दोस्त रहते थे. उन्होंने बताया, यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी निकली है.'' मैंने दोस्तों की बात मानकर नौकरी के लिए अप्लाई कर दिया. मेरे साथ-साथ गांव के करीब 20 लड़कों ने भी नौकरी के लिए अप्लाई किया. इस दौरान गांव के लोग ताने मारने लगे कि ये कलाकार कहां दारोगा में भर्ती हो पाएगा. 20 लड़कों में सिर्फ 2 लड़के इंटरव्यू तक पहुंच पाए और इंटरव्यू में सिर्फ मैं सिलेक्ट हुआ. दारोगा बनने के बाद जब भी मुझे छुट्टी मिलती थी, तब मैं मुंबई निकल जाता था और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से मिलता था.
आखिरकार, साल 2005 में मुझे भोजपुरी फिल्म 'हम तो प्यार करिले तोहरे से' में हीरो का रोल मिला, क्योंकि उस फिल्म के लिए पहले से चुने गए हीरो को डायरेक्टर ने किसी वजह से रिजेक्ट कर दिया था. हालांकि, वो फिल्म रिलीज नहीं हो पाई. उन्होने बताया, एक फिल्म में मुझे रवि किशन के साथ सेकंड लीड का रोल मिला. उस समय रवि जी ने मुझसे पूछा था, एक्टिंग आती है, हीरो बनने चले हो, हीरो को सब कुछ आना चाहिए- एक्टिंग और डांस भी. हालांकि, कुछ दिन बाद मैं फिल्म से बाहर हो गया. इसके बाद राहुल रॉय के साथ डायरेक्टर धीरज कुमार ने "सबसे बड़ा मुजरिम" फिल्म में मुझे अहम रोल दिया. फिल्म रिलीज होने के बाद रवि किशन का मेरे पास फोन आया और उन्होंने कहा कि बाबू बहुत अच्छी एक्टिंग और डांस किए हो, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है. ये मेरे लिए बहुत बड़ा अवॉर्ड था. अब मेरी भोजपुरी फिल्म 'हीरोगिरी' रिलीज होने वाली है. इस फिल्म में मैं लीड रोल में हूं. इसके बाद 'लव एक्सप्रेस' फिल्म भी पाइप लाइन में है.
आनंद बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले हैं. भास्कर को दिये इंटर्व्यू के अनुसार उन्होनें कहा - मैं क्लास 5th था, तभी से फिल्म में काम करने का शौक जागा. गांव के नाटक में शामिल होने के लिए मैं हमेशा आगे रहता था. 10th क्लास में मैं बिहार के फेमस भारत नाट्य परिषद से जुड़ा.'' ''1996 में बीए की पढ़ाई के दौरान मुझे हीरो बनने चस्का लगा और बिना किसी को बताए मैं एक दोस्तके साथ मुंबई भाग गया. उस समय मेरी जेब में सिर्फ 13 रुपए थे. हमने ट्रेन का टिकट भी नहीं लिया, जबलपुर स्टेशन पर टीटी ने हमें ट्रेन से उतार दिया, जिसके बाद हमें मजबूरन वापस आना पड़ा. घर लौटने पर खूब डांट पड़ी. एक्टिंग मेरा जुनून था. 6 महीने बाद दोस्तों ने पैसा इक्टठा कर मुझे 600 रुपए दिए और मैं दोबारा से मुंबई के लिए भाग निकला. मुंबई में गांव के एक मामा ने अपने पास रखा, लेकिन 15-20 दिन बाद उनका बर्ताव चेंज हो गया. क्योंकि मायानगरी की मंहगाई में किसी को रखना मुश्किल है. मामा के कहने पर मैंने नाइट वॉचमैन की नौकरी की, जहां मुझे 1000 से 1200 सैलरी मिलती थी, जो पूरा मामा ले लेते थे. मेरे मुंबई में रहने की बात जब बाबूजी को पता चली, तो वो 1997 में मुझे वापस घर ले आए और शर्त रखी कि पहले पढ़ाई पूरी करो तब मुंबई जाने दिया जाएगा. आनंद 3 भाई और 2 बहन हैं. पिता भोजपुर जिले के दोघरा गांव में किसानी करते हैं. मां लीलावती हाउस वाइफ हैं. आनंद की पत्नी सुजाता और 2 बेटियां हैं.